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प्रकृति और पर्यावरणसंयुक्त राज्य अमेरिका

सबसे ज्यादा खतरा अमेरिका, चीन और भारत कोः रिपोर्ट

२१ फ़रवरी २०२३

जलवायु परिवर्तन के कारण जिन इलाकों को सबसे ज्यादा खतरा है, उनमें आधे से ज्यादा भारत, चीन और अमेरिका के हैं. दस सबसे ज्यादा खतरे वाले इलाकों में नौ चीन के हैं.

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इंडोनेशिया के कई इलाके डूब जाएंगे
इंडोनेशिया के कई इलाके डूब जाएंगे, अगर यूं ही चलता रहातस्वीर: Georg Matthes/Taris Hirziman/DW

जलवायु परिवर्तन के कारण जो शहर नष्ट होने का खतरा झेल रहे हैं उनमें अमेरिका और चीन के कई इलाके शामिल हैं. चीन के आर्थिक केंद्रों को सबसे ज्यादा खतरा है क्योंकि दस सबसे ज्यादा खतरे वाले इलाकों में नौ उसके यहां हैं. इनमें शियांगजू और शांगडोंग जैसे शहर भी हैं जो चीन के सबसे बड़े आर्थिक केंद्र हैं.

द क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव (एक्सडीआई) नामक संस्था ने सोमवार को ऐसे सौ इलाकों की सूची जारी की है जो जलवायु परिवर्तन के कारण सर्वाधिक खतरा झेल रहे हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और चीन के इलाके सबसे ज्यादा खतरे में हैं जबकि भारत, चीन और अमेरिका मिलकर उस सूची का आधा हिस्सा बनाते हैं.

क्या क्या हैं खतरे

इस रिपोर्ट में सरकारों द्वारा कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए फौरन कदम उठाने की जरूरत बताते हुए कहा गया है कि ऐसे बाढ़ के लिए सुरक्षा जैसे उपाय भी करने होंगे. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान को भी बर्बादी का एक बड़ा खतरा बताया गया है.

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एक ही देश के सबसे ज्यादा खतरे वाली जगहों में चीन सबसे ऊपर है जबकि अमेरिका दूसरे नंबर पर है. फ्लोरिडा दसवें नंबर पर है. एक्सडीआई में विज्ञान और विकास प्रमुख कार्ल मैलन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "हमें चीन, अमेरिका और भारत जैसे देशों से अत्यधिक मजबूत संकेत मिले हैं और हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के इंजनों की बात कर रह हैं जहां बहुत विस्तृत ढांचा बना है.”

विश्लेषकों ने पाया कि खतरे वाले इलाके तटीय भी हैं और अंदरूनी भी और वहां बने मूलभूत ढांचे विनाश का खतरा झेल रहे हैं. रिपोर्ट में जिन खतरों का आकलन किया गया है उनमें अत्यधिक गर्मी, जंगल की आग, मिट्टी का कटाव, अत्यधिक तेज हवाएं और सर्दी शामिल हैं.

मुंबई और जकार्ता भी

विश्लेषकों ने 2,600 क्षेत्रों का जायजा लिया है और गणना की कि अगर 1990 की तुलना में इस सदी के आखिर तक औसत तापमान तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ना हो, तब 2050 तक कितना नुकसान होगा. यूएन की पर्यावरण समिति आईपीसीसी ने कहा है कि अगर खतरा रोकना है तो इस सदी के आखिर तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए.

मैलन ने कहा कि इन खतरों का असर आने वाले निवेश पर भी पड़ सकता है. उन्होंने कहा, "जो लोग इस सूची में शामिल राज्यों और प्रांतों में फैक्ट्री लगाने या सप्लाई चेन स्थापित करने के बारे में सोच रहे हैं, वे दो बार सोचेंगे.”

सौ सबसे ज्यादा खतरे वाले इलाकों की सूची में बीजिंग, ब्यून एयर्स, हो ची मिन्ह सिटी, जकार्ता, मुंबई, साओ पाउलो और ताइवान शामिल हैं. ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, जर्मनी और इटली के इलाके भी इस सूची का हिस्सा हैं.

यूरोप में जर्मनी का लोअर सैक्सनी प्रांत सबसे ज्यादा खतरे में हैं जबकि वेनिस शहर के इर्द गिर्द वाला वेनितो प्रांत चौथे नंबर पर है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)

 

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