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श्रीलंका: हाथियों को बचाने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक बैन

१६ फ़रवरी २०२३

श्रीलंका सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है. इस कदम का कारण प्लास्टिक के जहर से जंगली हाथियों और हिरणों की मौत है. एक समिति की सिफारिश के बाद बैन लगाने का फैसला किया गया है.

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कूड़े के बीच भोजन तलाशते हाथी
कूड़े के बीच भोजन तलाशते हाथीतस्वीर: Achala Pussalla/AP Photo/picture alliance

पिछले कुछ सालों में श्रीलंका में प्लास्टिक कचरे से निकलने वाले विषाक्त पदार्थों के कारण जंगली हाथी और हिरण मारे गए हैं. इस पर ध्यान देते हुए अब सरकार ने घोषणा की है कि उसने सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है.

कैबिनेट प्रवक्ता और मीडिया मंत्री बंडुला गुनावर्धने ने कहा कि जून से देश में प्लास्टिक कटलरी, कॉकटेल शेकर और आर्टफिशियल फूलों के उत्पादन या बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा. श्रीलंका में पर्यावरण और वन्य जीवन पर प्लास्टिक कचरे के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 18 महीने पहले नियुक्त एक पैनल ने इस कदम की सिफारिश की थी.

प्लास्टिक के कारण कई हाथियों की मौत हुई
प्लास्टिक के कारण कई हाथियों की मौत हुईतस्वीर: Achala Pussalla/AP Photo/picture alliance

प्लास्टिक के कारण खतरे में हाथी

देश ने 2017 में फ्लैश फ्लड की चिंताओं के कारण गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा दिया था. द्वीप के पूर्वोत्तर इलाके में हाथियों और हिरणों की बार-बार मौत के बाद दो साल पहले प्लास्टिक कटलरी, खाने के रैपर और प्लास्टिक के खिलौनों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

मृत पशुओं के पोस्टमॉर्टम से पता चला कि जानवरों की मौत खाद्य अपशिष्ट के साथ मिश्रित प्लास्टिक खाने से हुई थी. हालांकि श्रीलंका में प्लास्टिक उत्पादों का स्थानीय स्तर पर उत्पादन और बिक्री जारी रहा.

बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक पर भी बैन की मांग

श्रीलंका में एशियाई हाथियों के एक शीर्ष विशेषज्ञ जयंत जयावर्धने ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया, लेकिन समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि प्रतिबंध का विस्तार बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग पर भी होना चाहिए. उन्होंने कहा, "प्लास्टिक की थैलियां हाथियों और वन्यजीवों की खाद्य सप्लाई में प्रवेश कर रही हैं और यह अच्छा नहीं है."

हाथियों को श्रीलंका में एक पवित्र जानवर माना जाता है और यह कानूनी रूप से संरक्षित हैं. लेकिन इसके बावजूद हर साल करीब 400 हाथी और 50 लोग जानवरों और इंसान के बीच संघर्ष में मारे जाते हैं.

हाथियों के आवास सिकुड़ते जा रहे हैं जिसके कारण ये विशालकाय जानवर इंसानी आबादी वाले गांवों की ओर बढ़ रहे हैं और वहां अपना भोजन तलाशते हैं. इन गांवों में कई लोग प्लास्टिक के कचरे को कूड़ेदान में डालते हैं. इन कचरे से अपना भोजन खोजने वाले हाथियों की मौत प्लास्टिक कचरे के कारण हो जाती है.

लगभग पांच साल पहले त्रिंकोमलाई के पूर्वोत्तर जिले में दर्जनों जंगली हिरणों की मौत प्लास्टिक के जहर के कारण हो गई थी. जिसके बाद सरकार ने फॉरेस्ट एरिया के पास डंपिंग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था.

एए वीके (एएफपी, रॉयटर्स)