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सैलानियों से परेशान हो गया है यूरोप

अशोक कुमार
२५ सितम्बर २०२३

पेरिस हो या वेनिस, रोम हो या एथेंस, फ्लोरेंस या फिर एम्सटरडम. यूरोप दुनिया भर के सैलानियों का मक्का है. लेकिन अब यूरोप इन्हीं सैलानियों से तंग आ गया है और उन्हें नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रहा है.

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 सैलानियों से परेशान यूरोपीय शहर
वेनिस में यूरोप, अमेरिका और एशिया के सैलानियों का तांता लगा रहता हैतस्वीर: Luca Ponti/IPA/picture alliance

वेनिस जाकर गोंडोला में बैठना ऐसा अनुभव है जिसे शायद हर कोई लेना चाहता है. और पानी पर जिंदगी कैसे चलती है, यह देखने के लिए वेनिस से अच्छी जगह दुनिया में कोई नहीं है. इसीलिए तो इस शहर में हमेशा सैलानी उमड़े रहते हैं. इस शहर की आबादी लगभग 50 हजार है. 2019 में यहां आने वाले सैलानियों की संख्या 55 लाख से ज्यादा रही है. ऐसे में शहर के लोगों की शिकायत है कि उनका शहर तो उनका है ही नहीं. यह तो बस सैलानियों का ठिकाना है. इस भीड़ को कम करने के लिए वेनिस अगले साल से सिर्फ एक दिन के लिए शहर में आने वाले सैलानियों पर अलग से फीस लगाने की तैयारी कर रहा है.

ग्रीस के जंगलों में लगी आग के चलते फंसे हजारों सैलानी

वेनिस की तरह यूरोप के कई शहर आज ओवरटूरिज्म यानी जरूरत से ज्यादा टूरिज्म के शिकार हैं. फ्रांस भी अपने यहां सैलानियों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाएगा. फ्रांस दुनिया भर में सैलानियों का सबसे पसंदीदा ठिकाना है. उसके ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों को देखने के लिए पूरी दुनिया से लोग पहुंचते हैं. पीक सीजन में सैलानियों के रेले से पर्यावरण, स्थानीय लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी और खुद सैलानियों के अनुभव भी प्रभावित होते हैं.

सैलानियों से परेशान हो रहे हैं यूरोप के शहर
50 हजार की आबादी वाले वेनिस में 2019 में 55 लाख लोग आएतस्वीर: Luca Ponti/IPA/picture alliance

यूरोप के दूसरे शहर भी परेशान

आड्रियान सागर के तट पर क्रोएशिया का दुब्रोवनिक बसा है. यहां की आबादी की बात करें तो 41 हजार के आसपास है लेकिन 2019 में यहां आने वाले पर्यटकों की तादाद 14 लाख रही. 2011 में जब से यहां मशहूर टीवी सीरीज गेम ऑफ थ्रोन्स के कुछ हिस्से फिल्माए गए हैं तब से यहां आने वाले लोग यकायक बढ़ गए हैं. हद से ज्यादा सैलानियों की समस्या से आज यूरोप के सभी बड़े पर्यटन स्थल जूझ रहे हैं.

भूटान घूमने के लिए भारतीयों को भी पैसा देना होगा

रोम हो या बार्सिलोना, एथेंस या फिर फ्लोरेंस, यूरोप के बहुत सारे शहर आज ओवरटूरिज्म से परेशान हैं. कोरोना महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया थम गई थी तो जिन सेक्टरों पर सबसे ज्यादा असर हुआ, टूरिज्म उनमें से एक था. लेकिन अब बहुत कुछ वापस पटरी पर लौट चुका है और घुमक्कड़ लोग नए नए रिकॉर्ड बना रहे हैं. अकेले ग्रीस में पिछले साल गर्मियों के दौरान दस लाख सैलानी आए.

 सैलानियों के कारण शहरों की मुसीबत बढ़ती जा रही है
दुब्रोवनिक के सागर में फैला प्लास्टिक का कचरातस्वीर: Grgo Jelavic/PIXSELL/picture alliance

अर्थव्यवस्था के लिए अहम हैं सैलानी

यह हाल तब है जब दुनिया भर में महंगाई बढ़ती जा रही है, यूक्रेन में जारी युद्ध की वजह से एक तरह की अस्थिरता है और जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्रीस में गर्मियों के दौरान जंगलों की आग भड़कती है. वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन का कहना है कि बीते साल 96 करोड़ लोग विदेश घूमने गए. सोचिए इसमें अपने देश के भीतर घूमने वालों को भी मिला दें तो आंकड़ा कहां जाकर पहुंचेगा.

यह बात सही है कि सैलानियों के आने से पैसा आता है और अर्थव्यवस्था मजबूत होती है. लेकिन इसकी कीमत स्थानीय लोग चुकाते हैं, उन्हें रहने के लिए किफायती दामों पर मकान नहीं मिलते, क्योंकि मकान मालिक उन मकानों को होटल या गेस्ट हाउस बनाकर ज्यादा कमाना चाहते हैं. पर्यटकों की भीड़ से सड़कें जाम हो जाती हैं, शहर में आना जाना मुश्किल होता है. कई बार स्थानीय ईको सिस्टम और पर्यावरण को भी सैलानियों की वजह से नुकसान होता है. और जब भीड़ बहुत ज्यादा हो तो खुद पर्यटक भी किसी जगह को ना ठीक से देख पाते हैं और ना उसका आनंद ले पाते हैं. जब भीड़ ज्यादा होती है तो हर जगह सैलानियों की लंबी लाइन से होकर गुजरना पड़ता है. इसमें समय और ऊर्जा, दोनों की बर्बादी होती है.

यूरोपीय शहर सैलानियों के बोझ से परेशान हैं
एमसटरडम शहर भी सैलानियों की बढ़ती संख्या से त्रस्त हैतस्वीर: Paulo Amorim/NurPhoto/picture alliance

टूरिज्म का असर पर्यावरण पर भी

और आखिर में इस सबकी कीमत हमारेपर्यावरणऔर हमारी पृथ्वी को चुकानी पड़ती है. दुनिया में जितना भी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, उसमें से आठ प्रतिशत के लिए टूरिज्म सेक्टर जिम्मेदार है. इसमें सबसे ज्यादा योगदान विमानों का है. इसके अलावा बड़े बड़े क्रूज शिप भी खासा उत्सर्जन करते हैं. फिर सैलानियों के ठहरने के लिए होटल, खाने और सुवेनियर बनाने में भी उत्सर्जन होता है. कुल मिलाकर ओवरटूरिज्म अपने आप में कई समस्याओं को साथ लेकर आता है. इसीलिए इसके खिलाफ आवाजें लगातार तेज हो रही हैं. 

दुनिया को जानने और समझने का सबसे अच्छा तरीका है, दुनिया घूमना. लेकिन घूमने के लिहाज से यह जानना जरूरी है कि कहां जाया जाए और कब जाया जाए. ऐसा ना हो आप किसी ऐसे टापू पर जाने का प्लान बना रहे हो जहां की आबादी एक हजार है और वहां आपके जैसे पांच हजार लोग पहुंच जाएं... ऐसा करेंगे तो, आप उस जगह का आनंद नहीं ले सकेंगे और स्थानीय लोगों को जो परेशानी होगी, वो अलग. तो कोशिश करिए कि पीक सीजन में कहीं जाने के बजाय ऑफ सीजन में जाइए, और उन जगहों पर क्यों जाना जहां सब जा रहे हों. थोड़ा रिसर्च करके कुछ नए ठिकाने तलाशिए. और नए अनुभव लीजिए.