1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

शराबबंदी वाले राज्य में शराब की लत के शिकार पुलिसवाले

प्रभाकर मणि तिवारी
१६ अगस्त २०२२

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में शराबबंदी के बावजूद नशे की लत के शिकार 340 पुलिस वालों को खास तौर पर आयोजित नशा मुक्ति शिविरों में भेजा गया है. पुलिस वाले शराब के साथ दूसरी नशीली दवाओं के भी लती थे.

https://p.dw.com/p/4Fa6J
मिजोरम में 1997 में शराबबंदी लागू की गई थी
मिजोरम में 1997 में शराबबंदी लागू की गई थीतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

यह पुलिसकर्मी शराब के अलावा दूसरी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी आदी थे. पुलिस मुख्यालय की ओर से बीते दिनों एक अध्ययन में यह बात सामने आई थी. उसके बाद नशे की लत के शिकार 340 पुलिसवालों की शिनाख्त कर उनको इस लत से छुटकारा दिलाने के लिए सरकार ने 45 दिनों के एक शिविर के आयोजन किया है. यह शिविर तो पहले ही शुरू हो गया था. पुलिस ने अब एक बयान के जरिए इस बारे में जानकारी दी है.

यह भी पढ़ेंः मिजोरम में बढ़ रहा है शराब और नशीली दवाओं का इस्तेमाल

नशे की लत छुड़ाने की कोशिश

राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, "यह शिविर मिजोरम सशस्त्र पुलिस की आठ बटालियनों के मुख्यालय में नौ स्थानों पर चल रहे हैं. केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत नेशनल फंड फॉर कंट्रोल आफ ड्रग एब्यूज से मिली वित्तीय सहायता से इन शिविरों का आयोजन किया गया है.”

शराब की हर घूंट शरीर पर कैसा असर डालती है

इस अभियान की निगरानी के लिए राज्य के डीआईजी (प्रशिक्षण) के नेतृत्व में अधिकारियों की एक टीम का गठन किया गया है. वह अधिकारी बताते हैं कि इन शिविरों में शारीरिक कसरत के अलावा मानसिक मजबूती, धार्मिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण पर खास जोर दिया जा रहा है. इसके अलावा उनके परिवार भी वहीं आस-पास रखे गए हैं ताकि उन लोगों के मन में कोई उदासीनता घर नहीं कर सके.

यह भी पढ़ेंः बिहार में शराबबंदी को कौन लगा रहा पलीता

शराबबंदी की नाकामी

विपक्षी जोरम पीपुल्स मूवमेंट के नेता और पूर्व आईपीएस अधिकारी लालदुहोमा कहते हैं, "इस मामले से साफ है कि सरकार शराबबंदी के अपने फैसले को लागू करने में पूरी तरह नाकाम रही है.”

लंबे अरसे तक शराबबंदी लागू रहने के बाद इसे वर्ष 2015 में आंशिक रूप से हटाया गया था. साल 2018 में जीत कर सत्ता में आने के बाद जोरमथांगा के नेतृत्व वाली संजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) सरकार ने उसी साल दिसंबर से इसे दोबारा लागू कर दिया था.

लालदुहोमा कहते हैं, "मिजोरम में इतनी बड़ी तादाद में पुलिसवालों में शराब की लत से साफ है कि उनको खुलेआम शराब मिल रही है, लेकिन इससे सरकारी राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है.”

मिजोरम को शराबबंदी के कारण हर साल करीब 80 करोड़ के राजस्व का नुकसान हो रहा है. राज्य में शराबबंदी ने पड़ोस की म्यांमार से हेरोइन और दूसरी नशीली वस्तुओं की तस्करी को भी बढ़ावा दिया है.

मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने चुनाव जीतने के बाद 2019 में दोबारा शराबबंदी लागू की
मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने चुनाव जीतने के बाद 2018 में दोबारा शराबबंदी लागू कीतस्वीर: IANS

अरुणाचल प्रदेश में भी नशामुक्ति अभियान

मिजोरम ऐसे शिविर आयोजित करने वाला पूर्वोत्तर का दूसरा राज्य है. इससे पहले अरुणाचल प्रदेश ने भी अपने कर्मचारियों के लिए एक ऑनलाइन कोर्स शुरू किया था जिसमें नशीली दवाओं और शराब के सेवन के गंभीर नतीजों के प्रति उनको आगाह किया गया था.

मिजोरम में खासकर पुलिसवालों में बढ़ती नशे की लत ने सामाजिक संगठनों को भी चिंता में डाल दिया है. गैरसरकारी संगठन यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) के एक कार्यकर्ता लिलुआना कहते हैं, "पुलिसवालों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति गहरी चिंता का विषय है. सरकार को यह पता लगाना चाहिए कि आखिर इन लोगों को शराब और दूसरी नशीली वस्तुएं कहां से मिल रही थीं. सप्लाई के स्रोत को बंद किए बिना इस समस्या पर स्थायी रूप से काबू पाना संभव नहीं है.”