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रहस्यमय ब्लैक होल का पता चला

३ सितम्बर २०२०

वैज्ञानिकों ने एक नए ब्लैक होल का पता लगाया है जो अब तक का सबसे पुराना बताया जा रहा है. इसका भार हमारे सूरज के द्रव्यमान से करीब 142 गुना ज्यादा है.

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Verschmelzung Schwarzer Löcher
तस्वीर: picture-alliance/dpa

आमतौर पर माना जाता है कि ब्लैक होल इतने घने होते हैं कि इनके गुरुत्वाकर्षण बल से होकर प्रकाश की किरणें भी नहीं गुजर सकतीं. इस समझ के हिसाब से तो ब्लैकहोल के अस्तित्व पर ही सवाल उठ जाते हैं. दो दूसरे ब्लैकहोल के मिलने से बने इस ब्लैक होल को फिलहाल जीडब्ल्यू 190521 कहा जा रहा है. करीब 1500 वैज्ञानिकों के दो संघों ने इस बारे में कई रिसर्चों के बाद जानकारी दी है. रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक स्टारवरोस कात्सानेवास यूरोपियन ग्रैविटेशन ऑब्जर्वेटरी में  खगोल भौतिकविज्ञानी हैं. उनका कहना है, "इस घटना ने ब्लैक होल के बनने की खगोलीय प्रक्रिया पर से पर्दा उठाया है. यह एक पूरी नई दुनिया है."

इस कथित स्टेलर क्लास ब्लैक होल का निर्माण तब होता है जब कोई बूढ़ा तारा मर जाता है और आकार में 3-10 सूरज के बराबर होता है. भारी द्रव्यमान वाले ब्लैक होल ज्यादातर गैलैक्सियों के केंद्र में पाए जाते हैं. इनमें मिल्की वे भी शामिल है. इनका भार करोड़ों से अरबों सौर द्रव्यमान के बराबर होता है.

खगोलविज्ञान में बड़ा बदलाव

अब तक सूरज की तुलना में 100 से 1000 गुना ज्यादा मास वाले ब्लैक होल नहीं मिले हैं. रिसर्च रिपोर्ट की सहलेखिका मिषाएला यूनिवर्सिटी ऑफ पडोवा में खगोल भौतिकविज्ञानी हैं. उनका कहना है, "इतने अधिक द्रव्यमान की रेंज वाला यह पहला ब्लैक होल है जिसके बारे में प्रमाण मिला है. यह ब्लैक होल के खगोल भौतिकविज्ञान में बड़ा बदलाव लाएगा." मिषाएला के मुताबिक इस खोज से इस विचार को समर्थन मिलता है कि विशालकाय ब्लैक होल का निर्माण मध्य आकार वाले ब्लैक होलों के बार बार आपस में जुड़ने से हो सकता है.

Doppelsystem bestehend aus einem Schwarzen Loch und einem Stern
ब्लैक होल और सितारे का मेलतस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Brotkorb

वास्तव में वैज्ञानिकों ने सात अरब साल से भी पहले की गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों को देखा है. ये तरंगें सूरज से 85 और 65 गुना वजनी ब्लैक होल के आपस में मिलने से जीडब्ल्यू 190521 ब्लैक होल के निर्माण के दौरान पैदा हुईं थीं. जब ये ब्लैकहोल आपस में टकराए तो आठ सूरज के वजन जितनी ऊर्जा निकली. इसे ब्रह्मांड में बिग बैंग के बाद की सबसे बड़ी घटना माना जाता है. गुरुत्वीय तरंगों को सबसे पहले सितंबर 2015 में मापा गया था. दो साल बाद इसकी खोज करने वाले रिसर्चरों को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला.

अल्बर्ट आइंस्टाइन ने सापेक्षता के सिद्धांत में गुरुत्वीय तरंगों का अनुमान लगाया था. इस सिद्धांत के मुताबिक ब्रह्मांड में ये तरंगें प्रकाश की तेजी से फैल जाती हैं.

सूर्य की धधक का राज

ब्लैक होल की कहानी में नई चुनौती

जीडब्ल्यू 190521 की खोज 21 मई 2019 को तीन इंटरफेरोमीटरों के जरिए हुई थी. ये उपकरण पृथ्वी से गुजरने वाली गुरुत्वीय तरंगों  में किसी परमाणु नाभिक से हजार गुना छोटे आकार के परिवर्तन को भी माप सकती हैं. मौजूदा जानकारी के मुताबिक किसी तारे के गुरुत्वीय विखंडन से सूरज के भार की तुलना में 60-120 गुना वजनी ब्लैक होल का निर्माण नहीं हो सकता. तारों के विखंडन के तुरंत बाद होने वाला सुपरनोवा विस्फोट इनके टुकड़े टुकड़े कर देता है.

ब्लैकहोल के बनने की अब तक की कहानी में इस घटना ने एक नई चुनौती पैदा कर दी है. यह इस बात का भी संकेत है कि अब तक कितनी कम जानकारी है.  वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रह्मांड का एक विशालकाय भाग अब भी हमारे लिए अज्ञात है. हालांकि वैज्ञानिक इस खोज से चकित हैं. नई जानकारी देने वाली दोनों रिसर्च रिपोर्टें फिजिकल रिव्यू लेटर्स और एस्ट्रो फिजिकल जर्नल लेटर्स में छापी गई हैं. रिपोर्ट तैयार करने वाले दो संघों में एक है लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी यानी लिगो. इसमें प्रमुख रूप से एमआईटी और कैलटेक के वैज्ञानिक हैं. दूसरा संघ है विर्गो कोलैबोरेशन जिसमें पूरे यूरोप के 500 वैज्ञानिक हैं.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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