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झुग्गी बस्तियों के आधे घरों में है एलपीजी

प्रभाकर मणि तिवारी
१२ मार्च २०२१

केंद्र सरकार उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन मुहैया करा आम लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने के साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा के दावे तो कर रही है. लेकिन शहरों में झुग्गियों बस्तियों के सारे घरों के पास एलपीजी नहीं है.

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एलपीजी गैस
भारत में सभी घरों तक एलपीजी पहुंचाने के लिए कई बरसों से काम चल रहा हैतस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के एक ताजा सर्वेक्षण से पता चला है कि छह भारतीय राज्यों में शहरी झुग्गियों में रहने वाले परिवारों में से लगभग आधे ही एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में, ग्रामीण इलाकों की तस्वीर का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के शहरी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले आधे परिवार ही पूरी तरह एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं.

ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि इन शहरी झुग्गियों में 86 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन है. भारत की झुग्गी बस्तियों में रहने वाली कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा इन्हीं छह राज्यों में रहता है. इसके अलावा ऐसे घरों में से 16 प्रतिशत आज भी प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल करते हैं.

सर्वेक्षण रिपोर्ट

सीईईडब्ल्यू के ‘कुकिंग एनर्जी एक्सेस सर्वे 2020' के नतीजे हाल में जारी किए गए हैं. यह सर्वेक्षण छह राज्यों की शहरी झुग्गियों में किया गया था. इसके लिए देश के 58 अलग-अलग जिलों की 83 शहरी झुग्गी बस्तियों के 656 घरों को चुना गया था. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बस्तियों के 86 फीसदी घरों में एलपीजी कनेक्शन होने के बावजूद विभिन्न वजहों से लगभग आधे लोग ही रसोई गैस का इस्तेमाल करते हैं. इनमें से 37 फीसदी घरों को समय पर रीफिल की डिलीवरी नहीं मिलती. इसके साथ ही इन बस्तियों के 16 फीसदी घरों में अब भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, गोबर के उपले और केरोसिन जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. इससे घर के अंदर प्रदूषण बढ़ जाता है और उसमें रहने वाले लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने पर मजबूर हैं.

मुंबई की झुग्गी बस्ती
कनेक्शन होने के बावजूद बहुत से घरों में एलपीजी इस्तेमाल नहीं हो रही हैतस्वीर: Imago/Hindustan Times

रिपोर्ट के मुताबिक, सर्दियों में प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों का इस्तेमाल बढ़ जाता है. उस दौरान खाना पकाने के साथ ही लोगों को सर्दी से बचने के लिए भी आग की जरूरत पड़ती है. बस्तियों के लगभग दो-तिहाई घरों में ऐसे ईंधन का इस्तेमाल घर के भीतर किया जाता है और उनमें से 67 फीसदी घरों में धुआं बाहर निकलने के लिए कोई चिमनी नहीं है.

सर्वेक्षण रिपोर्ट में संगठन ने सरकार को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत उपभोक्ताओं की तादाद बढ़ाने की सलाह दी गई है. इसमें कहा गया है कि इस योजना के दूसरे चरण में सरकार को शहरी झुग्गी बस्तियों में उपभोक्ताओं की तादाद बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. इसकी वजह यह है कि अब भी काफी घर ऐसे हैं जहां एलपीजी का कनेक्शन नहीं है. रिपोर्ट में उज्ज्वला योजना को स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण संबंधी दूसरी केंद्रीय योजनाओं के साथ जोड़कर लोगों में स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल के प्रति जागरुकता फैलाने की सिफारिश की गई है ताकि लोग अधिक से अधिक तादाद में रसोई गैस का इस्तेमाल करें.

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सरकार को सलाह

सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी होने के मौके पर सीईईडब्ल्यू के सीईओ अरुणाभ घोष ने कहा, "सरकार को शहरी बस्तियों के उन घरों की पहचान कर एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराना चाहिए जिनके पास अब तक यह सुविधा नहीं है. इसके साथ ही तेल कंपनियों और वितरकों से बात कर डिलीवरी नेटवर्क को दुरुस्त करना जरूरी है ताकि समय पर घर बैठे सिलेंडर की सप्लाई सुनिश्चित की जा सके. इसके अलावा रसोई गैस की बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखते हुए उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के अलावा इन बस्तियों के दूसरे परिवारों को भी सब्सिडी की रकम बढ़ानी चाहिए.”

इस सर्वेक्षण का नेतृत्व करने वाली शैली झा ने कहा, "शहरी झुग्गी बस्तियों का एक बड़ा हिस्सा खासकर बढ़ती कीमतों और महामारी की वजह से एलपीजी के इस्तेमाल में समस्याओं से जूझ रहा है. शहरी झुग्गियों में उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की तादाद कम होने की वजह से वहां रहने वाले ज्यादातर परिवार पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त सिलेंडर के रूप में राहत सहायता के हकदार नहीं हैं.” सीईईईडब्ल्यू ने सुझाव दिया है कि नेशनल अर्बन लाइवलीहुड मिशन और आवास जैसे प्रमुख सरकारी कार्यक्रमों का इस्तेमाल रसोई के लिए साफ ईंधन मुहैया कराने के लिए भी किया जाना चाहिए. इससे जरूरतमंद गरीबों को उनकी आर्थिक पहुंच के भीतर साफ ईंधन मिल सकेगा.

सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इन बस्तियों में रहने वाले सिर्फ आधे परिवारों में महिलाएं तय करती हैं कि एलपीजी रीफिल कब खरीदा जाए और खरीदा भी जाए या नहीं. इससे पता चलता है कि निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी सीमित है. ऐसे परिवारों को और सब्सिडी और जागरुकता की जरूरत है.

कोलकाता के समाजशास्त्री शैवाल कर कहते हैं, "सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत कनेक्शन मुहैया कर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है. लेकिन इस बात की निगरानी का कोई ठोस तंत्र विकसित नहीं हो सका है कि लोग दोबारा रीफिल खरीदते हैं या नहीं. और नहीं तो इसमें क्या दिक्कतें हैं. वितरण और निगरानी तंत्र को दुरुस्त किए बिना इस योजना का खास फायदा नहीं होगा.”

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