1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

किन्नर बने कांस्टेबल

चारु कार्तिकेय
३ मार्च २०२१

13 किन्नरों को पुलिस में भर्ती कर छत्तीसगढ़ ने किन्नरों को बराबरी के अवसर देने की दिशा में नई पहल की है. इससे कठिनाइयों का सामना करने पर मजबूर किन्नर समुदाय के लिए सम्मान और आजीविका पाने के नए रास्ते खुलने की उम्मीद है.

https://p.dw.com/p/3q8Go
BdTD Bild des Tages Deutsch | LGBT Pride in Mumbai
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

छत्तीसगढ़ में ऐसा पहली बार हुआ है. इसके पहले सिर्फ तमिल नाडु और राजस्थान में किन्नरों को पुलिस में भर्ती किया गया था, लेकिन वहां भी इतनी बड़ी संख्या नहीं थी. इसे सिर्फ छत्तीसगढ़ नहीं, बल्कि पूरे देश में किन्नरों को सम्मान और बराबरी के अवसर मिलने की राह में एक मील के पत्थर के रूप में देखा जा रहा है.

राज्य पुलिस ने 2017 में ही किन्नरों को भर्ती करने का फैसला ले लिया था, लेकिन फैसले पर अमल होते होते लगभग चाल साल बीत गए. भर्ती के लिए परीक्षा की प्रकिया 2019-20 में पूरी हुई और एक मार्च को नतीजे आए. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चुने गए सभी किन्नर उम्मीदवारों को बधाई देते हुए एक ट्वीट में बताया कि इन 13 के अलावा दो और उम्मीदवार वेटिंग लिस्ट में हैं. इन्हें मिला कर कुल 2038 कांस्टेबल भर्ती किए गए हैं, जिनमें 1736 पुरुष हैं और 289 महिलाएं.

2014 में ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों या किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दे दी थी और कहा था कि संविधान पुरुषों और महिलाओं को जो मूलभूत अधिकार देता है उन पर किन्नरों का भी उतना ही अधिकार है. लेकिन इस फैसले के बाद भी किन्नरों के प्रति समाज के रवैये में कोई बड़ा बदलाव अभी तक नहीं आया है. अधिकतर किन्नरों को आज भी समाज में ना अपनापन मिलता है और ना रोजगार के मौके.

उनसे उनके परिवार भी मुंह मोड़ लेते हैं जिसकी वजह से वो आज भी समाज के हाशियों पर ही जिंदगी बिताने को मजबूर हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ पुलिस के इस कदम से किन्नर समुदाय में एक नई आशा जगी है. 2011 में भारत में हुई जनगणना के मुताबिक देश में 4.9 लाख किन्नर हैं, लेकिन इनकी असल संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है. 2018 में आई राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 96 प्रतिशत किन्नरों को नौकरी देने से मना कर दिया जाता है.

ऐसे में छत्तीसगढ़ पुलिस के इस प्रयास के कई सार्थक असर होने की उम्मीद है. जल्द ही खाकी वर्दी को अपनाने वाले इन 13 प्रत्याशियों के बयान कई मीडिया रिपोर्टों में छपे हैं जिनमें इन्होने बताया कि पढ़े-लिखे होने के बावजूद इन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी और ये सड़क पर भीख मांग कर, तिरस्कार और छेड़छाड़ से जूझते हुए किसी तरह से जिंदगी बिता रहे थे. उनको उम्मीद है कि अब पुलिस कांस्टेबल के रूप में उनका अपना जीवन तो बदलेगा ही, साथ ही वो दूसरे किन्नरों के हालात भी सुधारने की कोशिश करेंगे.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी