1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अमोनिया पर टिकी हैं जापान की उम्मीदें

२९ अक्टूबर २०२१

जापान कोयले से चलने वाले संयंत्रों का जीवन बढ़ाने के लिए कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली अमोनिया के इस्तेमाल को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. आखिर किस वजह से अमोनिया पर टिकी हैं जापान की उम्मीदें?

https://p.dw.com/p/42LAy
Japan Fukushima Daiichi Nuclear Power Plant
तस्वीर: Hironori Asakawa/AP Photo/picture alliance

जापान दुनिया का पांचवां सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है. उसने लक्ष्य बनाया है कि 2050 तक वो कार्बन न्यूट्रल बन जाएगा. हालांकि 2011 की फुकुशिमा त्रासदी के बाद उसका परमाणु उद्योग संकट में पड़ गया और बिजली बनाने के लिए कोयले और गैस पर उसकी निर्भरता बढ़ गई.

जापान पर ब्रिटेन और अन्य देशों से कोयले के इस्तेमाल को कम करने का लगातार दबाव बना रहता है. ग्लासगो में शुरू होने वाली सीओपी26 शिखर बैठक में उसे एक बार फिर इन सवालों का सामना करना पड़ेगा. इसीलिए वो ऐसे उपायों की तलाश कर रहा है जिनसे उसके कार्बन पदचिन्ह भी कम हो सकें और ऊर्जा की मांग भी पूरी हो सके.

अमोनिया के फायदे

अमोनिया का मुख्य रूप से उर्वरकों और केमिकलों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है. इसमें तकनीकी और कीमत संबंधी चुनौतियां भी हैं लेकिन जापान को उम्मीद है कि वो एक ऐसे तरीके का पथ प्रदर्शक बन सकता है जिससे कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों में कार्बन के उत्सर्जन को कम किया जा सके.

Japan Kernkraftwerk Mihama wird wieder hochgefahren
जापान का मिहामा परमाणु ऊर्जा संयंत्रतस्वीर: Kyodo News/imago images

अक्टूबर में देश की सबसे बड़ी ऊर्जा उत्पादक कंपनी जेरा ने अपने एक संयंत्र में छोटी मात्रा में अमोनिया का इस्तेमाल शुरू किया. 4.1 गीगावाट का यह संयंत्र केंद्रीय जापान के आईची के हेकिनन में स्थित है. यह 30 साल पुराना है और देश का सबसे बड़ा कोयले से चलने वाला संयंत्र है. अमोनिया मुख्य रूप से हाइड्रोजन और नाइट्रोजन से बनती है. हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस ने मिलती है और नाइट्रोजन हवा से.

अमोनिया को जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड नहीं निकलती लेकिन अगर उसे जीवाश्म ईंधनों के साथ बनाया जाए तो उस प्रक्रिया में गैसें निकलती हैं. हेकिनन में जो प्रयोग चल रहा है उसका लक्ष्य है मार्च 2025 तक एक गीगावाट के एक यूनिट में करीब दो महीनों तक 30,000 से 40,000 टन अमोनिया में से 20 प्रतिशत अमोनिया के इस्तेमाल को हासिल करना. अगर यह प्रयोग सफल हो गया तो यह एक बड़े व्यावसायिक संयंत्र में दुनिया में पहला इस तरह का प्रयोग होगा.

राह में कई चुनौतियां

जापान को उम्मीद है कि धीरे धीर वो कोयले को पूरी तरह हटा कर अमोनिया का इस्तेमाल कर सकेगा और 2050 तक पूरी तरह अमोनिया से चलने वाला एक संयंत्र बना सकेगा. अमोनिया का फायदा यह है कि ऊर्जा कंपनियां मौजूदा संयंत्रों और तकनीक को बिना ज्यादा बदलाव किए इस्तेमाल करना जारी रख सकेंगी. हेकिनन वाले प्रयोग में 48 बर्नरों को बदलने और एक टंकी और कुछ पाइपलाइनों को बदलने के अलावा बाकी उपकरण वैसे के वैसे ही रखे जाएंगे.

Japan IHI Corp. Wasserkraft
2019 में इन उपकरणों के जरिये समुद्र के पानी से ऊर्जा बनाने की कोशिश भी की गई थीतस्वीर: Kyodo/picture alliance

लेकिन अभी इस राह में कई चुनौतियां हैं. फरवरी में उद्योग मंत्रालय ने बताया था कि 20 प्रतिशत अमोनिया मिला कर बिजली बनाने की कीमत है 12.9 येन प्रति किलोवॉट, जो 100 प्रतिशत कोयले के इस्तेमाल के खर्च से 24 प्रतिशत ज्यादा है. हेकिनन में संयंत्र के प्रबंधक कत्सुया तनिगावा कहते हैं, "अगर अमोनिया मुख्यधारा का ईंधन बन गया तो सप्लाई करने वालों के बीच प्रतियोगिता की वजह से दाम गिर जाऐंगे."

उद्योग मंत्री ने बताया कि अमोनिया की सप्लाई भी एक चुनौती है. एक गीगावॉट के संयंत्र में 20 प्रतिशत अमोनिया के साल भर इस्तेमाल के लिए 5,00,000 टन अमोनिया चाहिए. मुख्य जगहों पर सभी कोयले वाले संयंत्रों में ऐसा करने के लिए दो करोड़ टन अमोनिया की जरूरत होगी जो उसके वैश्विक उत्पादन का 10 प्रतिशत है. एक बड़ी सप्लाई चैन बनाने के लिए जापानी कंपनियां सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे और एशिया की कंपनियों के साथ मिल कर काम कर रही हैं.

सीके/एए (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी