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कहीं गर्मी ज्यादा घातक होती है तो कहीं कम, ऐसा क्यों?

३ अगस्त २०२२

कहीं कम तापमान वाली गर्मी भी ऐसी घातक होती है कि हजारों लोग मर जाते हैं, और कहीं ज्यादा तापमान वाली गर्मी भी उतना बुरा असर नहीं डाल पाती. क्यों होता है यह फर्क?

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यूरोप में इस बार रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी है
यूरोप में इस बार रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी हैतस्वीर: Mindaugas Kulbis/AP Photo/picture alliance

पिछले महीने यूरोप में टूटा गर्मी का कहर ऐसा भयानक था कि इंग्लैंड और वेल्स में एक हफ्ते में औसत से 1,700 ज्यादा मौतें दर्ज हुईं. शुरुआती आंकड़े दिखाते हैं कि पुर्तगाल और स्पेन में भी 1,700 अतिरिक्त मौतें दर्ज हुई हैं.

संभव है कि ये आंकड़े बदलकर और बढ़ जाएं क्योंकि डेटाबेस को अभी अपडेट किया जा रहा है. फिर भी, इससे एक इशारा मिल जाता है कि लंदन से लेकर मैड्रिड तक पारे ने जब 40 का आंकड़ा पार किया तो लोगों पर क्या गुजरी.

फिर भी, जुलाई महीने के ये आंकड़े 2003 में यूरोप में पड़ी गर्मी के आंकड़ों के आस-पास भी नहीं पहुंच पाए हैं. उस साल महाद्वीप में सिर्फ गर्मी की वजह से 70 हजार लोगों की जान गई थी. जब गर्मी ज्यादा थी, तो भी वह उतनी घातक साबित नहीं हुई. ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, हर हीट वेव अलग होती है और उसका प्रभाव अलग हो सकता है.

हालात पर निर्भर

गर्मी कहां और कब पड़ी है, यह बात बहुत मायने रखती है. 2003 में गर्मी अगस्त के पहले दो हफ्तों में पड़ी थी. तब काम-धंधे बंद हो गए, नदियां सूख गईं और फसलों का सफाया हो गया. फ्रांस के पेरिस इलाके पर असर सबसे ज्यादा हुआ था. दरअसल, हीट वेव हमेशा शहरी क्षेत्रों में ज्यादा असर करती हैं क्योंकि वहां कंक्रीट और एसफाल्ट होता है जो गर्मी सोखता है.

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तब गर्मी का वक्त वही था जबकि छुट्टियां चल रही थीं और बहुत से बच्चे अपने माता-पिता आदि के साथ बाहर घूम रहे थे. कई मामलों में तो बुजुर्ग घरों में अकेले थे. फ्रांस में तब करीब 15,000 लोग मरे थे उनमें से 11,000 की उम्र 75 साल से ज्यादा थी.

अमेरिका के इंडियाना में परड्यू यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले गर्मी से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ मैथ्यू ह्यूबर कहते हैं, "बड़ी संख्या में लोगों ने घरों में बैठी दादी-नानी को विदा कहा और छुट्टियां मनाने चले गए. सामान्य तौर पर वहां लोग होते जो उनकी देखभाल कर रहे होते.”

तब डॉक्टर भी छुट्टी पर थे. फ्रांस के जन स्वास्थ्य विभाग में शोधकर्ता मटील्डे पास्कल बताती हैं, "आपातकालीन सेवाएं पूरी तरह तैयार नहीं थीं. इतने लोग नहीं थे कि अस्पताल में काम करने के लिए बुलाया जा सके.”

सीखे सबक

2003 की त्रासदी से कई यूरोपीय देशों ने कड़े सबक सीखे. गर्मी पड़ने पर क्या कदम उठाने हैं, इस बारे में कार्य-योजनाएं बनाई गईं और पहले ही चेतावनियां जारी की जाने लगीं. विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि तैयारी बड़ी संख्या में जानें बचा सकती है.

ब्रिटेन की रीडिंग यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता क्लोई ब्रिमीकोम कहती हैं, "(पहले से) ज्यादा लोग जानते हैं कि हीट वेव के दौरान क्या करना है.” हालांकि कुछ देश बाकियों से ज्यादा तैयार हैं. अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका के 90 प्रतिशत घरों में एयर कंडिशनर हैं जबकि यूरोप में यह संख्या सिर्फ 20 प्रतिशत है.

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तकनीक हमेशा ही मददगार साबित हो, ऐसा नहीं होता है. गजा पट्टी में रहने वाले फलस्तीनियों के लिए गर्मी इसलिए और बुरी हो गई है क्योंकि बिजली में कटौती बढ़ गई है. कई बार तो दिन में दस-दस घंटे तक लोगों को बिना बिजली के रहना पड़ता है.

बेघर और गरीब तबकों के लोग ऐसे हालात के ज्यादा शिकार बनते हैं. अमेरिका के ऐरिजोना प्रांत के फीनिक्स में पिछले साल गर्मी से 339 लोगों की जान गई थी जिनमें 130 बेघर लोग थे.

मनोवैज्ञानिक तैयारी

जो लोग गर्म देशों में रहते हैं वे अधिक गर्मी को लेकर ज्यादा ढले होते हैं. बार-बार जब एक व्यक्ति अत्याधिक गर्मी झेलता है तो उसका शरीर समय के साथ-साथ कम हृदयगति और कम तापमान जैसे बचाव उपाय तैयार कर लेता है, जिससे उनकी सहन शक्ति बढ़ जाती है. लिहाजा उच्च हृदयगति के कारण मरने वाले लोगों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि वे कहां रह रहे हैं. इसे मिनिमम मोर्टैलिटी टेंपरेचर (MMT) कहते हैं. ह्यूबर कहते हैं, "अगर आप भारत में रहते हैं तो वहां युनाइटेड किंग्डम के मुकाबले एमएमटी कहीं ज्यादा है.”

हाल में हुए शोध यह भी कहते हैं कि जैसे जैसे गर्मी बढ़ती है, किसी क्षेत्र का एमएमटी बढ़ता है. मिसाल के तौर पर स्पेन में 1978 से 2017 के बीच गर्मी के मौसम के औसत तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ एमएमटी में 0.73 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है.

वीके/एए (रॉयटर्स)

 

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