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आईसीजे में जर्मनी पर नरसंहार समझौते के उल्लंघन का मुकदमा

विलियम नोआ ग्लूक्रॉफ्ट
८ अप्रैल २०२४

संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में जर्मनी के खिलाफ सुनवाई होने जा रही है. निकारागुआ ने शिकायत की है कि इस्राएल को समर्थन दे कर जर्मनी ने नरसंहार समझौते का उल्लंघन किया है.

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Prüfung Israels Besatzungspolitik am Internationalen Gerichtshof in Den Haag
तस्वीर: Robin van Lonkhuijsen/ANP/AFP/Getty Images

नरसंहार के अपराध के निवारण और सजा समझौते को आमतौर पर 'नरसंहार समझौता' कहा जाता है. यह 20वीं सदी में हुए भयानक नरसंहारों के जवाब में तैयार किया गया था. संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में यह समझौता 1948 में तैयार हुआ. इसका लक्ष्य जर्मनी में होलोकॉस्ट के दौरान 60 लाख यूरोपीय यहूदियों और लाखों दूसरे लोगों के नरसंहार जैसी घटनाओं को "दोबारा कभी नहीं" होने देना था.

"नरसंहार" के लिए कानूनी ढांचा तैयार कर समझौते से उम्मीद की गई थी कि यह उन्हें रोकेगा. हालांकि उसके बाद के दशकों में दुनिया भर में कई बड़े युद्ध अपराध हुए हैं. मध्य अमेरिकी देश निकारागुआ के साथ ही जर्मनी और इस्राएल उन 150 देशों में शामिल हैं जिन्होंने इस समझौते पर दस्तखत किए. इसका मतलब है कि समझौते में शामिल हर देश की यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वह इसके प्रावधानों का पालन करे. इसके साथ ही उसे यह अधिकार भी है कि दूसरे देशों पर इसके उल्लंघन का औपचारिक आरोप लगाए.

निकारागुआ ने यही किया है. 1 मार्च 2024 को उसने द हेग की अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) में जर्मनी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. इसमें आरोप लगाया गया है कि इस्राएल को हथियारों की आपूर्ति और निरंतर सहयोग दे कर जर्मनी, " फलीस्तीनी लोगों के खिलाफ किए जा रहे नरसंहार को रोकने का दायित्व निभाने में नाकाम रहा है," इस तरह उसने दूसरे अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों समेत "समझौते का उल्लंघन कर नरसंहार के कृत्य में योगदान किया है."

अल शिफा अस्पताल को हुए भारी नुकसान को देखते फलीस्तीनी लोग
इस्राएल गाजा पर 7 अक्टूबर पर हमले के बाद से ही हवाई हमले कर रहा हैतस्वीर: AFP

शिकायत में कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि वह जर्मनी के खिलाफ "तात्कालिक कदम" उठाए जिसमें इस्राएल को उसकी मदद रोकने की मांग शामिल हो. निकारागुआ ने, "खासतौर से सैन्य उपकरणों समेत सैन्य सहयोग की बात की है क्योंकि नरसंहार समझौते के उल्लंघन में यह सहयोग इस्तेमाल हो सकता है."

'नरसंहार' की परिभाषा कानूनी राय का मसला 

7अक्टूबर को हमास के हमले में कम से कम 850 आम लोगों समेत करीब 1,200 लोगों की मौत के बाद इस्राएल ने गाजा पट्टी की घेरेबंदी कर उस पर बमबारी कर दी. इसके नतीजे में अब तक 32,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है जो वहां की आबादी का 1.5 फीसदी से ज्यादा है. इनके अलावा हजारों लोग लापता हैं. यह आंकड़े हमास के स्वास्थ्य प्रशासन के हैं. हमास को अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई देशों ने आतंकवादी गुट घोषित कर रखा है. कुछ राहत एजेंसियों का कहना है कि इन आंकड़ों में बताई गई संख्या असल संख्या से कम है.

संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार गुटों ने इस्राएली सेनाओं पर आम लोगों के खिलाफ अंधाधुंध हमले करने का आरोप लगाया है. यहां तक कि इस्राएल के प्रबल सहयोगी अमेरिका ने भी आम लोगों के मौत की संख्या को बहुत ज्यादा बताया है.

इस्राएल के हमले को नरसंहार माना जाए या नहीं यह कानूनी राय का मामला है. इस साल जनवरी में इस्राएल के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका की शिकायत पर आईसीजी ने कहा था, "गाजा में दक्षिण अफ्रीका ने इस्राएल की जिन गतिविधियों पर आरोप लगाया है उनमें कुछ ऐसी लग रही हैं जो समझौते के प्रावधानों के दायरे में आती हैं."

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इस मामले पर 28 मार्च को सुनवाई में अदालत ने कुछ और बातें जोड़ीं, जिनमें इस्राएल को अंतरराष्ट्रीय कानून में उसके दायित्वों को पूरा करने पर रिपोर्ट देने को कहा गया.

जब जब इस्राएल ने ऐसे आरोपों से इनकार किया है तब तब जर्मनी से उसे बढ़ चढ़ कर समर्थन मिला है. इसे ही इस्राएल की गलती में जर्मनी का साथ देना समझा जा रहा है. जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता क्रिस्टियान वागनर ने निकारागुआ के शिकायत करने के बाद कहा है, "हम आईसीजे को महत्व देते हैं और निश्चित रूप से इसकी कार्यवाही और अपने बचाव में शामिल होंगे." इसके साथ ही वागनर का यह भी कहना है, "निकारागुआ ने हम पर जो आरोप लगाए हैं हम साफ तौर पर उस से इनकार करते हैं."

निकारागुआ की शिकायत का असर

निकारागुआ का का मामला काफी हद तक दक्षिण अफ्रीका की शिकायत पर आधारित है. मुमकिन है कि इसमें यह दलील भी दी जाए कि जनवरी के फैसले में तीसरे देश के रूप में जर्मनी जैसे देश के लिए कुछ जिम्मेदारियां तय की गई थीं. डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून पढ़ाने वाले प्रोफेसर मिषाएल बेकर का कहना है, "इन मामलों में काफी ज्यादा अस्पष्टता है. हालांकि निकारागुआ के मुकदमे के सामने कुछ गंभीर बाधाएं हैं."

निकारागुआ के सामने एक चुनौती इस्राएल को मुकदमे में सीधे शामिल किए बगैर उस पर नरसंहार के आरोप लगाना है. बेकर का कहना है कि जर्मनी के खिलाफ अदालत से कोई फैसला लेने के लिए, "निकारागुआ का यह साबित करना जरूरी हो सकता है कि इस्राएल के अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन में जर्मनी के कुछ दायित्व पूरे नहीं हुए बल्कि इसने एक गंभीर खतरा पैदा किया."

समझौते पर दस्तखत करने वाले हर देश के पास अदालत में जाने का अधिकार है लेकिन निकारागुआ के सामने उसके बारे में सार्वजनिक राय से पार पाने की भी चुनौती है. एरफुर्ट यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस की प्रोफेसर सोफिया हॉफमान का कहना है, "निकारागुआ में साफ तौर पर तानाशाही है. दक्षिण अफ्रीका का मामला अलग है जो ना सिर्फ एक लोकतंत्र है बल्कि उसके बारे में एक अतुलनीय सकारात्मक राय भी है."

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दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया के मंच पर दक्षिण अफ्रीका ज्यादा भरोसेमंद है. उसने अपने यहां से रंगभेद शासन को खत्म कर 1990 के दशक में लोकतंत्र की राह पकड़ी. पत्रिका 'द इकोनॉमिस्ट' की इंटेलिजेंस यूनिट ने लोकतंत्र सूचकांक में इस्राएल को 47वें नंबर पर रखा है जबकि निकारागुआ को 143वें नंबर पर है. निकारागुआ निरंकुश शासन वाले देशों में है और रूस से महज एक स्थान ऊपर है.

हालांकि हॉफमान का कहना है कि बावजूद इसके "एक बहुत वैध और अंतरराष्ट्रीय दावा किया गया है. नियम सबके लिए एक है." हॉफमान ने यह भी कहा कि जर्मनी, "कुछ हद तक दोहरी नीतियों वाला है, एक तरफ वह यूक्रेन के मामले में अंतरराष्ट्रीय कानून का समर्थन करता है, दूसरी तरफ महत्वपूर्ण राजनीतिक सहयोगियों के मामले में आंखें मूंद लेता है."

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गाजा में अंतरराष्ट्रीय मदद पहुंचाने में काफी दिक्कतें पेश आ रही हैंतस्वीर: Ministry of Defense United Arab Emirates/Handout/REUTERS

इस्राएल का पक्का सहयोगी जर्मनी

जर्मनी इस्राएल का अकेला सहयोगी नहीं है लेकिन वह सबसे मजबूत सहयोगियों में जरूर है. साल 2019 से 2023 के बीच अमेरिका के बाद इस्राएल को सबसे ज्यादा हथियारों की सप्लाई जर्मनी ने की. युद्ध और हथियारों की बिक्री पर नजर रखने वाली संस्था सिपरी के मुताबिक यह इस्राएल में आयात किए कुल हथियारों का करीब 30 फीसदी है. 7 अक्टूबर के हमलों के बाद जर्मन सरकार ने कई अतिरिक्त आपूर्तियों को मंजूरी दी है.

मुकदमा दायर करने से पहले निकारागुआ ने जर्मनी समेत कुछ पश्चिमी देशों को डिप्लोमैटिक नोट भेजे. ये वो देश हैं जो या तो इस्राएल का समर्थन करते हैं या फिर जिन्होंने यूएनआरडब्ल्यूए को धन देना बंद कर दिया है. यूएनआरडब्ल्यूए संयुक्त राष्ट्र की वो एजेंसी है जो फलीस्तीनी शरणार्थियों की मदद करती है. इस्राएल का आरोप है कि यूएनआरडब्ल्यूए के कर्मचारी 7 अक्टूबर के हमले में शामिल थे.

कूटनीतिक अभियान का इन देशों पर कुछ असर हो सकता है. कुछ देशों ने हथियारों की बिक्री बंद कर दी है या फिर गाजा में स्थिति बिगड़ने के बाद यूएनआरडब्ल्यूए का फंड बहाल कर दिया है. जर्मनी ने पिछले हफ्ते यूएनआरडब्ल्यूए की मदद बहाल कर दी लेकिन इसमें गाजा के लिए राहत को शामिल नहीं किया गया है. इसके लिए इस्राएल के दावों पर चल रही अंतरराष्ट्रीय जांच को कारण बनाया गया है.

आइसीजे के पास अपने फैसलों को लागू कराने का कोई साधन नहीं है. हालांकि यह सरकार पर राजनीतिक और सार्वजनिक दबाव बना सकता है. जर्मनी के सामने उसके अस्तित्व से जुड़ी प्रतिबद्धताएं हैं. विश्व युद्धों के बाद उसकी पहचान अंतरराष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक सिद्धांत को मानने की रही है जो मोटे तौर पर उसके ऐतिहासिक अपराधों के नतीजे में ही बनाए गए. जर्मनी इस्राएल को खास समर्थन दे रहा है जबकि यहूदियों के देश से कई देशों के यहूदी ही अलग हो रहे हैं.

कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 8 और 9 अप्रैल की तारीख तय की है. जर्मनी और निकारागुआ एक एक दिन अपनी मौखिक दलीलें पेश करेंगे. इसके कुछ हफ्तों बाद इस पर फैसला आ सकता है.