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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

हर चार साल में लीप ईयर? यह पूरा सच नहीं है

२६ फ़रवरी २०२४

2024 एक लीप ईयर है यानी फरवरी में अतिरिक्त दिन. पर हर चौथा साल लीप ईयर नहीं होता. इसका गणित बहुत जटिल है.

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माया कैलेंडर
यह माया कैलेंडर है. दुनियाभर में कई कैलेंडर प्रचलित हैंतस्वीर: Roberto E. Rosales/ZUMAPRESS/picture alliance

लीप ईयर यानी वह साल जब फरवरी में 28 के बजाय 29 दिन होते हैं. जैसा कि साल 2024 में. आम समझ है कि लीप ईयर हर चौथे साल होता है. लेकिन गणित इतना भी सरल नहीं है. असल में लीप ईयर का गणित सिर्फ हर चौथे साल में एक दिन जोड़ने से खत्म नहीं हो जाता. अक्सर यह लीप मिनट और लीप सेकेंड तक भी जाता है.

कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के मुताबिक लीप ईयर इसलिए शुरू किया गया था ताकि हर साल होने वाली खगोलीय घटनाओं जैसे कि ग्रहण आदि का महीनों के साथ सामंजस्य रहे. ऐसा इसलिए है क्योंकि पृथ्वी अपनी कक्षा का चक्कर लगाने में पूरे 365 दिन नहीं लगाती. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक इस पूरे चक्कर में 365 दिन और लगभग छह घंटे लगते हैं.

हर चौथा साल लीप ईयर

इस हिसाब से तो छह घंटे हर साल जुड़कर चौथे साल में 24 घंटे यानी एक दिन हो जाता है, जिसे 29 फरवरी के रूप में जोड़ दिया जाता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है. लीप ईयर हर चार साल में आता है, यह पूरा सच नहीं है. नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूजियम के विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर हर चौथ साल में एक दिन जोड़ा जाए तो भी 44 मिनट का हेर-फेर रह जाता है, जिसे जोड़ा जाना जरूरी है. जैसे कि 2016 एक लीप ईयर था लेकिन एक सेकेंड लंबा था.

इसलिए जब कैलेंडर बनाया गया तो बनाने वालों ने मिनटों और सेकेंडों का हिसाब लगाया और तय किया कि हर चौथा साल तो लीप ईयर होगा लेकिन जो साल 100 से विभाजित नहीं होगा, वह तभी लीप ईयर हो सकता है, जबकि वह 400 से भी विभाजित हो. यही वजह है कि पिछले 500 साल में साल 1700, 1800 और 1900 लीप ईयर नहीं थे. जबकि साल 2000 एक लीप ईयर था. इसी तरह अगले 500 साल में 2100, 2200, 2300 और 2500 लीप ईयर नहीं होंगे, लेकिन साल सन 2400 एक लीप ईयर होगा.

बर्मिंगम की अलाबामा यूनिवर्सिटी में भौतिक विज्ञानी यूनुस खान कहते हैं, "अगर लीप ईयर ना होता तो हर कुछ सौ साल बाद मौसमों का वक्त बदल जाता. गर्मियां नवंबर में होतीं. क्रिसमस गर्मियों में होती.”

कहां से आया लीप ईयर?

लीप ईयर का विचार किसे आया इसका कोई सरल जवाब नहीं है. आसान शब्दों में इतना ही कहा जा सकता है यह धीरे धीरे विकसित हुआ विचार है. प्राचीन सभ्यताओं के लोग अपने जीवन को नियमित करने के लिए सितारों की गणनाओं पर निर्भर थे. कैलेंडर का विकास कांस्य युग में हुआ माना जाता है. ये कैलेंडर चांद और सूरज की गति पर आधारित थे. आज भी अधिकतर कैलेंडर उसी पर चलते हैं.

जब रोम में जूलियस सीजर का शासन था, तब कैलेंडरों का बहुत घालमेल हो गया था. रोम साम्राज्य का विस्तार इतना अधिक था कि अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग कैलेंडर इस्तेमाल हो रहे थे. ऐसे में एक व्यवस्था बनाने के लिए 46 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर ने जूलियन कैलेंडर की शुरुआत की. यह पूरी तरह सूर्य की गति पर आधारित था और इसमें एक साल में 365.25 दिन बन रहे थे. तब हर चौथे साल एक दिन जोड़ने की व्यवस्था शुरू हुई.

फिर आया ग्रेगोरियन कैलेंडर

लेकिन उस कैलेंडर में भी समस्या थी. चैपल हिल स्थित नॉर्थ कैरोलाइना यूनिवर्सिटी में खगोलविद निक ईकस कहते हैं कि सूर्य की गति एकदम 365.25 दिन नहीं है. यह 365.242 दिन है. इसलिए बहुत सारे लीप ईयर बन रहे थे.

जूलियन कैलेंडर में एक साल 0.0078 दिन यानी 11 मिनट और 14 सेकेंड्स लंबा था. इसलिए गड़बड़ियां हो रही थीं क्योंकि यह समय धीरे धीरे जमा होता जाता था.

फिर भी सैकड़ों साल तक इस कैलेंडर का इस्तेमाल होता रहा. 16वीं सदी में पोप ग्रेगरी तेरहवें ने आखिरकार इसमें बदलाव किया और ग्रेगोरियन कैलेंडर बनाया. हालांकि यह भी गड़बड़ियों से रहित नहीं है और लीप ईयर की जरूरत अब भी पड़ती है.

पोप ग्रेगरी को इस बदलाव की जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि हर साल ईस्टर का दिन खिसक जाता था. चर्च चाहता था कि ईस्टर हमेशा बसंत में आए. इसलिए ग्रेगरी ने जूलियन कैलेंडर में से अतिरिक्त दिन निकाल दिए और लीप ईयर की गणना में भी बदलाव किया. तभी यह गणना की गई कि कब-कब चौथा साल लीप ईयर नहीं होगा.

वीके/एए (एपी)