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यूक्रेन पर हमले से किस कदर प्रभावित हुआ दक्षिण-पूर्व यूरोप

२४ फ़रवरी २०२३

यूक्रेन पर रूसी हमले का काफी ज्यादा असर दक्षिण-पूर्व यूरोप के सभी देशों पर पड़ा है. कई देशों में भारी तादाद में शरणार्थी पहुंचे हैं, तो कहीं के निवासियों को हमले का डर सता रहा है. डीडब्ल्यू ने इस मामले की पड़ताल की है.

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यूक्रेन पर रूसी हमले का सीधा प्रभाव उसके नजदीकी पड़ोसी देशों पर पड़ा है
यूक्रेन पर रूसी हमले का सीधा प्रभाव उसके नजदीकी पड़ोसी देशों पर पड़ा हैतस्वीर: Alexandar Detev/DW

यूक्रेन पर रूसी हमले का सीधा प्रभाव उसके नजदीकी पड़ोसी देशों पर पड़ा है. युद्ध प्रभावित इलाकों के लाखों लोग रातों-रात इन देशों में शरण लेने पहुंच गए. यूक्रेन के तीस लाख लोग अपनी जान बचाने के लिए रोमानिया पहुंचे और इनमें से एक लाख लोग यहां शरणार्थी के तौर पर बस गए हैं. कुछ ऐसा ही हाल बुल्गारिया और ग्रीस का है. यूक्रेन को हथियार की आपूर्ति करने वाले बुल्गारिया में भी हजारों लोगों को शरण दी गई है.

सिर्फ हंगरी ही ऐसा देश है जो अलग रास्ता अपनाए हुए है. यहां के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी हैं. उन्होंने रूस के खिलाफ लगाए गए यूरोपीय प्रतिबंधों का बिना मन से समर्थन किया है.

डीडब्ल्यू संवाददाता ने इस बात की पड़ताल की है कि पिछले एक साल से जारी रूस और यूक्रेन युद्ध ने दक्षिण-पूर्व यूरोप के इन चार देशों को किस तरह प्रभावित किया है.

रोमानिया को सता रहा रूसी हमले का डर

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौका है जब रोमानिया के लोगों ने डर महसूस किया. 24 फरवरी, 2022 को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया, तब यहां के लोगों के मन में यह डर बैठ गया कि अगर रूस रोमानिया पर हमला कर देगा, तो वे क्या करेंगे.

रोमानिया के सैन्य विशेषज्ञ क्लॉडियू डेगेराटू ने डीडब्ल्यू को बताया, "सेना और खुफिया सेवाओं ने तुरंत बेहतर प्रतिक्रिया दी.” यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद देश के रक्षा बजट में बढ़ोतरी की गई. साथ ही, सेना को आधुनिक तौर पर सुसज्जित करने के लिए कार्यक्रम शुरू किया गया. डेगेराटू का कहना है कि घरेलू हथियार उद्योग में अब तत्काल निवेश की जरूरत है. युद्ध के मद्देनजर नाटो ने भी रोमानिया में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.

रोमानिया को सता रहा रूसी हमले का डर
रोमानिया को सता रहा रूसी हमले का डरतस्वीर: Ukrzaliznycya / Ukrainische Eisenbahnen

रोमानिया की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

बिजनेस जर्नलिस्ट स्टेलियन मस्कालू ने डीडब्ल्यू को बताया कि रोमानिया रूसी गैस पर ज्यादा निर्भर नहीं है और रूस के साथ उसके वित्तीय लेन-देन भी काफी कम हैं, इसलिए वह यूरोपीय संघ के अन्य देशों की तरह ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ.

मस्कालू के मुताबिक, युद्ध की वजह से रोमानिया की आर्थिक स्थिति काफी ज्यादा प्रभावित नहीं हुई. हालांकि, यहां के लोग डरे हुए जरूर हैं. कोविड-19 की वजह से दुनिया के अन्य देशों की तरह रोमानिया भी आर्थिक रूप से प्रभावित हुआ था. लोगों के बीच उम्मीद जगी थी कि अर्थव्यवस्था में अब सुधार होगा, लेकिन अब यह उम्मीद कम हो गई है.

मस्कालू ने कहा, "ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी और खराब आर्थिक प्रबंधन की वजह से महंगाई तेजी से बढ़ी है. इससे लोगों की आय कम हुई है. इसका सीधा असर उनकी जीवनशैली पर पड़ा है.”

यूक्रेन पर रूसी हमले की वजह से पैदा हुए अनाज संकट के दौरान, रोमानिया ने काला सागर पर स्थित अपने बंदरगाह कॉन्स्टेंटा के जरिए यूक्रेनी अनाज के निर्यात में अहम भूमिका निभाई. वहीं, अन्य रास्तों से यूक्रेन का अनाज ले जाने वाले जहाजों को अक्सर इस्तांबुल के बंदरगाह में 50 दिनों तक डॉक में रखा जाता है, क्योंकि रूस के पास उन कार्गो की जांच करने का अधिकार होता है.

रोमानिया ने काला सागर पर स्थित अपने बंदरगाह कॉन्स्टेंटा के जरिए यूक्रेनी अनाज के निर्यात में अहम भूमिका निभाई
रोमानिया ने काला सागर पर स्थित अपने बंदरगाह कॉन्स्टेंटा के जरिए यूक्रेनी अनाज के निर्यात में अहम भूमिका निभाईतस्वीर: Daniel Mihailescu/AFP/Getty Images

यूक्रेन को गोला-बारूद भेजकर समर्थन कर रहा बुल्गारिया

बुल्गारिया की सरकार ने आज तक सीधे तौर पर यूक्रेन को गोला-बारूद या हथियार की आपूर्ति नहीं की है. इसमें आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह पारंपरिक तौर पर रूस का समर्थक देश है. हालांकि, हकीकत में स्थिति कुछ अलग है. दरअसल, नाटो का सदस्य देश बुल्गारिया यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति करने वाले प्रमुख देशों में से एक है.

पश्चिमी देशों के समर्थक किरिल पेटकोव की सरकार, जो सिर्फ आठ महीनों तक सत्ता में थी, ने अप्रैल 2022 से अगस्त 2022 तक यूक्रेन को गोला-बारूद और डीजल दोनों की आपूर्ति की. अनुमान है कि यूक्रेन को करीब 30 फीसदी हथियार बुल्गारिया ने भेजे थे. साथ ही, यूक्रेनी सेना के टैंक और अन्य वाहनों को चलाने के लिए 40 फीसदी ईंधन भी बुल्गारिया से आए थे.

बुल्गारिया ने हथियार से यूक्रेन की मदद की
बुल्गारिया ने हथियार से यूक्रेन की मदद कीतस्वीर: SERGEI SUPINSKY/AFP/Getty Images

रूसी गैस पर बुल्गारिया की निर्भरता

बुल्गारिया रूसी गैस पर काफी ज्यादा निर्भर है. इसके बावजूद, पिछले साल अप्रैल में कई देशों ने रूस से आने वाले गैस में कटौती की थी. बुल्गारिया भी उन देशों में से एक था. ऐसे हालात में यूक्रेन को डीजल की आपूर्ति करना, बुल्गारिया का एक साहसिक कदम था.

देश का एक बड़ा तबका रूसी समर्थक है. ऐसे में उन लोगों को नाराज करके यूक्रेन की मदद करने का जोखिम उठाना भी उतना ही साहसिक कदम था. उस समय पेटकोव के पूर्व गठबंधन सहयोगियों में से एक बुल्गेरियन सोशलिस्ट पार्टी (बीएसपी) और राष्ट्रपति रुमेन रादेव ने यूक्रेन को सैन्य सहायता देने और रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का तीखा विरोध किया था.

गठबंधन बनाए रखने और देश में रूसी समर्थकों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कभी भी खुलकर यह बात नहीं कही कि उसने यूक्रेन को गोला-बारूद और ईंधन की आपूर्ति की है. जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह बात फैलने लगी कि पेटकोव ने यूक्रेन की मदद की, तब उनकी कार्यशैली को लेकर देश में विवाद बढ़ा.

बुल्गारिया में कम हो रहा पुतिन का समर्थन

राष्ट्रपति रादेव सार्वजनिक तौर पर रूसी हमले की निंदा करते हैं, लेकिन रूस के खिलाफ उठाए जाने वाले कदमों का भी विरोध करते हैं. पेटकोव की सरकार गिरने के बाद 2022 के अंत में देश की संसद ने बहुमत से यह समर्थन किया कि यूक्रेन को सीधे तौर पर सैन्य सहायता उपलब्ध कराई जाए. हालांकि, राष्ट्रपति रादेव द्वारा नियुक्त अंतरिम सरकार ने इस दिशा में अब तक कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया है.

वहीं, बुल्गारिया में पुतिन और उनके हमले का सीधे तौर पर समर्थन करने वाले लोगों की संख्या कम हो रही है. इसके बावजूद, सर्वे से यह पता चलता है कि देश में अप्रैल 2023 में होने वाले चुनावों में पश्चिमी समर्थक दलों को बहुमत मिलने की संभावना काफी कम है.

यूरोप के साथ नहीं है हंगरी

यूक्रेन पर रूसी हमले के एक साल पूरे होने से कुछ ही दिन पहले हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने फिर से यूरोपीय संघ में ‘पुतिन के समर्थक' के तौर पर खुद को दिखाया. 18 फरवरी को उन्होंने बुडापेस्ट में देश को संबोधित किया. इस दौरान यूक्रेन के साथ एकजुटता को लेकर एक भी शब्द नहीं कहा.

इसके बजाय, उन्होंने पश्चिमी देशों पर युद्ध का समर्थन करने का आरोप लगाया. साथ ही, यह भी कहा कि ये देश ‘नींद में छत पर चलने वाले लोगों' की तरह व्यवहार कर रहे हैं, जिससे दुनिया एक नए विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है. उन्होंने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों को समाप्त करने, पश्चिम के सभी देशों और रूस के बीच बेहतर आर्थिक संबंधों को बहाल करने और रूस-अमेरिका के बीच शांति वार्ता का आह्वान किया.

पश्चिमी समर्थकों को उकसा रहे हंगरी पीएम

ओरबान ने यूक्रेन को टैंक आपूर्ति करने के जर्मनी के फैसले की तुलना पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ हिटलर के सैन्य अभियान से की. उन्होंने कहा, "कुछ हफ्तों में जर्मनी के टैंक यूक्रेन से होते हुए रूसी सीमा की तरफ बढ़ेंगे. शायद उनमें पुराने नक्शे के इलाके भी शामिल होंगे.”

मौजूदा स्थिति यह है कि हंगरी के प्रधानमंत्री आज भी यूक्रेन पर रूसी हमले की खुलकर निंदा नहीं कर रहे हैं. इसके बजाय, यूक्रेन पर उनकी टिप्पणी ने बार-बार खलबली पैदा की है. जनवरी में ओरबान ने यूक्रेन को ‘नो मेन्स लैंड' बताया था. उनकी इस टिप्पणी की यूक्रेन ने कड़ी निंदा की थी और हंगरी के राजदूत को तलब किया था.

हंगरी काफी हद तक रूसी गैस पर निर्भर है. शायद यह भी एक वजह हो सकती है कि ओरबान रूस का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन इससे यह देश राजनीतिक रूप से यूरोप में अकेला पड़ता जा रहा है. जब 9 फरवरी को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने ब्रेसेल्स में यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन में भाग लिया, तो पारंपरिक ‘पारिवारिक फोटो' के लिए इकट्ठे हुए यूरोपीय देश के प्रमुखों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत किया. सिर्फ विक्टर ओरबान ही वहां मौजूद ऐसे शख्स थे जिन्होंने ताली नहीं बजाई.

शरणार्थियों को ग्रीस में मिला नया ठिकाना

शरणार्थी नीना प्लेचाक-पास्कल ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं बस खुश रहने की कोशिश कर रही हूं. जब 2014 में पुतिन की सेना ने क्रीमिया को नियंत्रण में ले लिया था और रूसी समर्थकों ने दोनेत्सक में मेरे पैतृक घर पर कब्जा कर लिया, तो मैं यूक्रेन की राजधानी कीव भाग गई थी. मुझे कीव में फिर से नई जिंदगी की शुरुआत करनी पड़ी. पिछले साल जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब मैं फिर से भागकर ग्रीस के थेसालोनिकी पहुंची.”

नीना, यूक्रेन में रह रहे 90,000 लोगों वाले ग्रीक समुदाय की एक सदस्य है. वह ग्रीक भी बोल लेती हैं. इस वजह से उन्हें यहां रहने में ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है. यूक्रेन में वह लॉजिस्टिक कंपनी में काम करती थीं. अब उसी कंपनी के लिए ग्रीस से ऑनलाइन काम करती हैं. उनकी 15 वर्षीय बेटी दिन में ग्रीस के एक अंतरराष्ट्रीय स्कूल में जाती हैं और शाम को वह अपने यूक्रेनी स्कूल में ऑनलाइन क्लास करती हैं.

शरणार्थियों के लिए बड़ी बाधा बनी भाषा

यूक्रेन और ग्रीस, दोनों देशों में ईसाई प्रमुख धर्म है. इसलिए यह देश भी उन्हें अपने घर जैसा लगता है. हालांकि, इससे उनकी जिंदगी की परेशानियां कम नहीं हुई हैं. सबसे बड़ी बाधा भाषा है. नीना कहती हैं, "हम यहां छुट्टियां मनाने नहीं आए हैं. भाषा की जानकारी के बिना कई दस्तावेज हासिल करना मुश्किल है. अधिकांश अधिकारी सिर्फ ग्रीक बोलते हैं.”

थेसालोनिकी में मौजूद यूक्रेनी दूतावास के मुताबिक, यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से करीब एक लाख यूक्रेनी ग्रीस पहुंचे. उन्हें अस्थायी तौर पर रहने की इजाजत (टीएमपी) दी गई है. इसका मतलब है कि उन्हें शरण के लिए सीधे तौर पर आवेदन नहीं करना पड़ता है. साथ ही, अन्य देशों के शरणार्थियों की तुलना में अधिक आसानी से रेजिडेंट परमिट मिल जाता है.

यूक्रेनी दूतावास के वादिम साबुक कहते हैं, "इसके बावजूद कई शरणार्थियों के लिए जिंदगी आसान नहीं है. यहां आने वाले कई लोग दूसरे देशों में इसलिए चले गए क्योंकि उन्हें वहां ज्यादा वित्तीय सहायता मिलती है. यही कारण है कि अब ग्रीस में यूक्रेन के लगभग 22,000 लोग ही बचे हैं.”