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स्वास्थ्यसंयुक्त राज्य अमेरिका

गांजे-चरस से होता है किशोरों में अवसाद?

एस्तेबान पार्दो
२६ मई २०२३

चरस-गांजे का इस्तेमाल करने वाले किशोरों में अवसाद से जुड़े साक्ष्यों की भरमार है. लेकिन ये साफ नहीं कि उनके सेवन से ही ऐसा होता है या नहीं.

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तस्वीर: Luis Barron/eyepix via ZUMA Press Wire/picture alliance

चरस-गांजे को लेकर दुनिया का नजरिया बदलने लगा है. चिकित्सा में इसके संभावित उपयोग को खंगाला जा रहा है और उसके इस्तेमाल को वैध बनाने की कोशिशें भी चल रही हैं.

कनाडा, उरुग्वे, मेक्सिको और थाईलैंड समेत आठ देशों और अमेरिका के 22 राज्यों ने गांजे को कानूनी मंजूरी दे दी है. करीब 50 देशों ने चिकित्सा इस्तेमाल के लिए इसे वैध कर दिया है. दूसरे कई देश इसी दिशा में अपने कानूनों को लचीला बना रहे हैं.

लेकिन तंबाकू और अल्कोहल की तरह, वैध कर देने का मतलब ये नहीं कि ये नशा नुकसानदायक नहीं. दुनिया भर में किशोरों के बीच चरस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक अमेरिका में 25 लाख किशोर चरस लेते हैं और पिछले दशकों में युवाओं के बीच इसका चलन बढ़ा है.

इसीलिए कानूनी रूप से वैध बनाने और चिकित्सा में उपयोग करने के प्रति बढ़ते रुझान ने खतरे की घंटी भी बजाई है, खासकर किशोरों में स्वास्थ्य जोखिमों की आशंका को देखते हुए.

विकसित होता दिमाग

ये कहना थोड़ा मुश्किल है कि किशोरावस्था कब थम जाती है, लेकिन ये साफ है कि ये वो अवधि है जो बहुत सारे शारीरिक बदलावों के साथ आती है, जिसमें दिमाग में होने वाले परिवर्तन भी शामिल हैं. इन बदलावों की वजह से ये समझना और भी मुश्किल हो जाता है कि गांजा किशोर मस्तिष्क को कैसे प्रभावित कर सकता है.

बहुत भारी पड़ सकती है कम उम्र में गांजे की लत

अमेरिका के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के मुताबिक दिमाग करीब 20-25 साल की उम्र तक विकसित होता रहता है. इस दौरान दिमाग में भावनाओं को नियंत्रित करने, तनाव झेलने, प्रशंसा और प्रेरणा, निर्णय क्षमता, सोच-विचार कर कदम उठाने, उद्दीपनों को नियंत्रित करने और तर्कसंगति जैसी जरूरतों को अंजाम देने वाले हिस्सों का प्रमुख विकास और मरम्मत होती रहती है. किशोर वय में व्हाइट मैटर में भी बढ़ोत्तरी होती है और ग्रे मैटर कम होता जाता है. जिसकी वजह से दिमाग के अलग-अलग हिस्से ज्यादा तेजी और कुशलता से संचार करते हैं.

किशोरों के लिए उम्र का ये दौर खासा मुश्किल होता है. न सिर्फ उनके शरीर में बड़े बदलाव हो रहे होते हैं बल्कि वे पहचान, सामाजिक दबाव, अच्छे अंकों की तलब, पारिवारिक हालात और दूसरी अन्य चीजों से भी अक्सर जूझ रहे होते हैं.

अमेरिका के सब्सटांस अब्यूज एंड मेंटल हेल्थ सर्विसेस एडिमिनस्ट्रेशन के मुताबिक ऐसे तमाम बदलावों और दबावों की वजह से किशोर, मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं की चपेट में आ सकते हैं जैसे कि घबराहट, बेचैनी और अवसाद. और इनसे निपटने के लिए वे गांजा-चरस आदि नशीले पदार्थों का सेवन करने की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं. समस्या ये है कि चरस का इस्तेमाल आगे चलकर उनकी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों को और बढ़ा सकता है.

क्योंकि इस अवस्था में मस्तिष्क विकसित हो रहा होता है तो वो अल्कोहल, तंबाकू, मारिजुआना और दूसरे नशीले पदार्थों के प्रति खासतौर पर संवेदनशील होता है. अमेरिकन एकेडमी ऑफ चाइल्ड एंड एडोलेसंट साइकिएट्री के मुताबिक नशीले पदार्थ किशोरावस्था के दौरान हो रहे विकास को बदलने या उसमें देरी के जिम्मेदार होते हैं.

गांजे को लेकर इस बात के प्रमाण मिलने लगे हैं कि उससे किशोरों के दिमाग में बदलाव आता है.

गांजे से जुड़ा प्रमाण और अवसाद

अमेरिका के रोग नियंत्रण और निषेध केंद्र (सीडीसी) के मुताबिक चरस के इस्तेमाल को सोचने-विचारने और समस्याओं का हल करने में होने वाली मुश्किलों, याददाश्त और सीखने और समन्वय और ध्यान में कमी से जोड़ा जाता रहा है. ये साफ नहीं है कि गांजे का इस्तेमाल रोक देने के बाद भी ये समस्याएं बनी रहती हैं या नहीं.

शोध में गांजे के इस्तेमाल और बेचैनी और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बीच भी संबंध दिखाये गये हैं. उन लोगों पर ये बात ज्यादा लागू होती है जो मनोवैज्ञानिक कारणों से गांजा लेते हैं.

कम उम्र में गांजा पीना हो सकता है बहुत खतरनाक

जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में इस महीने की शुरुआत में प्रकाशित एक अध्ययन ने पिछले 12 महीनों में कभी-कभार गांजा लेने वाले किशोरों का परीक्षण किया. नशे के इस्तेमाल और स्वास्थ्य से जुड़े 2019 के राष्ट्रीय सर्वे में शामिल करीब 70,000 किशोरों की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया गया.

चरस इस्तेमाल न करने वालों की तुलना में, उसका इस्तेमाल करने वाले लेकिन लत के दायरे में न आने वाले किशोरों में अवसाद, आत्महत्या का ख्याल, सोचने की क्षमता का ह्रास और ध्यान लगाने में कठिनाई जैसी मानसिक समस्याएं दो से चार गुना ज्यादा पाई गईं.

इससे समझा जा सकता है कि चरस का इस्तेमाल और मानसिक बीमारियों के बीच संबंध होता है लेकिन ये अभी भी साफ नहीं है कि सीधे तौर पर पहली चीज की वजह से दूसरी चीज होती है.

जामा के एक और हालिया अध्ययन में पाया गया कि किशोरों में चरस का इस्तेमाल, जीवन में आगे चलकर अवसाद और आत्महत्या के ख्याल में वृद्धि का जोखिम भी बढ़ा देता है.

लेकिन साइकोफार्माकोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित 2022 के अध्ययन ने दिखाया कि गांजे का इस्तेमाल करने वाले किशोरों में, चरसी वयस्कों की तुलना में, अवसाद या बेचैनी जैसे मानसिक स्वास्थ्यगत तकलीफें विकसित होने की आशंका कम थी. सिर्फ उन्हीं किशोरों में ज्यादा गंभीर मनोविकार मिले जिन्हें गांजे की लत थी.

क्या गांजा वजह है?

ये सह-संबंध, मुर्गी और अंडे जैसे कारण-कार्य सरीखा नहीं है. ये बताना कठिन है कि किशोरों में गांजे का इस्तेमाल अवसाद और दूसरे मनोविकारों से उच्चतर जुड़ाव का कारण है या इन मनोविकारों से पीड़ित किशोरों में गांजा लेने की ओर प्रवृत्त होते हैं.

फ्रंटियर्स ऑफ साइकोलजी में 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन ने गांजे और किशोर मस्तिष्क को लेकर मौजूद प्रमाण की समीक्षा कर ये नतीजा निकाला कि बहुत सारे उपलब्ध, कथित क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन जिस तरह से डिजाइन किये जाते हैं, उन्हें देखते हुए, हम गांजे और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध की प्रकृति के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जान सकते.

क्या मनगढंत है इलाज में भांग से फायदे की बात

क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन एक खास समय में अलग-अलग समूहों को खंगालते हैं. उनका लक्ष्य होता है एक बार में ही किसी विशेष विषय पर विभिन्न समूहों का डाटा इकट्ठा करने का. शोधकर्ता डाटा का विश्लेषण करते हैं और संबंध या पैटर्न खोजने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे स्थापित नहीं कर पाते कि किससे क्या होता है.

फ्रंटियर्स ऑफ साइकोलजी का अध्ययन इस पर भी जोर देता है कि मुमकिन है गांजे का इस्तेमाल और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं दोनों ही किसी और चीज की वजह से हो रहे हों. जैसे कि तनाव और बेचैनी के प्रति किशोरों की संवेदनशीलता का ऊपर जिक्र किया गया था.

गांजे, चरस या भांग से किशोरों में मानसिक बीमारियां होती हैं या नहीं, ये पता लगाने के लिए और रिसर्च की जरूरत है.

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