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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

अंतरिक्ष में रहने का मस्तिष्क पर क्या असर होता है?

९ जून २०२३

अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने का मस्तिष्क पर असर होता है. इस बारे में नासा ने अध्ययन किया है.

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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्री
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रीतस्वीर: NASA TV/REUTERS

अंतरिक्ष का आकर्षण अपनी जगह है और वहां होने के खतरे अपनी जगह. अंतरिक्ष का वातावरण मानव शरीर के लिए काफी मुश्किल होता है. माइक्रोग्रैविटी के हालात और अन्य कई चीजें शरीर पर बुरा असर डालती हैं. इनमें मस्तिष्क भी शामिल है. नासा ने मानव मस्तिष्क पर अंतरिक्षीय वातावरण के असर को समझने के लिए एक अध्ययन किया है.

8 जून को नासा के विशेषज्ञों ने कहा कि जो अंतरिक्ष यात्री छह महीने से ज्यादा समय इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन या नासा स्पेस शटल पर रहे हैं, उनके मस्तिष्क के बीच के हिस्से में फैलाव पाया गया. इस हिस्से को सेरिब्रल वेंट्रिकल्स कहते हैं और यह मस्तिष्क के बीचोबीच स्थित होता है. इसी में वह द्रव्य जमा होता है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बीच आता-जाता है. यह गाढ़ा बेरंग पानी जैसा द्रव मस्तिष्क के लिए तकिये जैसा काम करता है और झटका लगने पर उसे सुरक्षा देता है.

30 यात्रियों पर अध्ययन

अपने अध्ययन के लिए विशेषज्ञों ने 30 अंतरिक्ष यात्रियों के मस्तिष्क का स्कैन किया. उन्होंने पाया कि ऐसी यात्राओं के बाद सामान्य होने के लिए वेंट्रिकल को तीन साल तक का वक्त लगा. इस आधार पर विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि अंतरिक्ष यात्राओं के बीच कम से कम तीन साल का अंतर होना चाहिए.

फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंटिस्ट हेदर मैक्ग्रॉगर के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन के नतीजे पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं. मैकग्रॉगर कहती हैं, "अगर वेंट्रिकल्स को सामान्य स्थिति में लौटने के लिए समुचित समय ना मिले तो इससे मस्तिष्क की माइक्रोग्रैविटी में द्रव्य में होने वाले बदलावों से निपटने की क्षमता पर असर पड़ सकता है.”

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वेंट्रिकल्स में बदलाव उम्र बढ़ने के साथ-साथ भी देखा जाता है. ऐसा होने पर मरीजों की सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होती है. अन्य शोधकर्ता राखाएल साइडलर के मुताबिक अभी यह नहीं पता है कि वेंट्रिकल्स में आने वाले बदलाव का अंतरिक्ष यात्रियों पर क्या असर होता है. वह कहते हैं, "इसके लिए लंबी अवधि के ज्यादा अध्ययनों की जरूरत होगी. वेंट्रिकल के फैलने से मस्तिष्क में आसपास के उत्तक सिकुड़ सकते हैं.”

बदल जाता है मस्तिष्क

अध्ययन में यह भी पता चला कि गुरुत्वाकर्षण ना होने से मस्तिष्क में बदलाव होते हैं. साइडलर बताते हैं, "यह असर यांत्रिक लगता है. हमारी नाड़ियों में वॉल्व होते हैं जो हमारे शरीर के द्रवों को गुरुत्वाकर्षण के असर में पैरों की ओर बढ़ने से रोकते हैं. अगर गुरुत्वाकर्षण नहीं होगा तो उलटा होगा यानी द्रव सिर की ओर जाएंगे. इससे वेंट्रिकल्स में फैलाव होगा और मस्तिष्क खोपड़ी में ऊपर की ओर खिसक जाएगा.”

यह अध्ययन अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के 23 पुरुष और 7 महिला अंतरिक्ष यात्रियों पर हुआ जिनकी उम्र 47 वर्ष के आसपास थी. इनमें से आठ ने करीब दो हफ्ते तक अंतरिक्ष की यात्रा की जबकि 18 ऐसे थे जो छह महीने तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहे. चार ने वहां करीब एक साल बिताया.

जो यात्री कम समय के लिए अंतरिक्ष में गए थे, उनके मस्तिष्क में बदलाव बेहद मामूली या बिल्कुल नहीं हुआ. छह महीने या उससे ज्यादा समय तक अंतरिक्ष में रहने वाले यात्रियों में फैलाव देखा गया. हालांकि छह महीने और एक साल की यात्राएं करने वाले यात्रियों में फैलाव में ज्यादा अंतर नहीं था.

मैक्ग्रॉगर समझाती हैं, "इससे पता चलता है कि ज्यादातर फैलाव पहले छह महीने में होता है और उसके बाद साल पूरा होते होते कम होने लगता है.” यह अच्छी खबर हो सकती है क्योंकि मंगल ग्रह पर जाने वाले बहुत लंबे अभियानों में मस्तिष्क पर असर ना होने की उम्मीद की जा सकती है.

वीके/एए (रॉयटर्स)

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