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किताबें या ई-बुक्स: पृथ्वी के लिए क्या बेहतर है?

नाइल किंग | नताली मुलर
१ मार्च २०२४

डिजिटल किताबें जंगलों को बचाती हैं, लेकिन जहरीला इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी पैदा करती हैं. वहीं, कागज एक नवीकरणीय संसाधन है. हालांकि, करोड़ों किताबों के छपने से बहुत मात्रा में कार्बन फुटप्रिंट भी पैदा होता है.

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इलेक्ट्रॉनिक रीडिंग डिवाइस का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें हजारों किताबें आ सकती हैं और इसमें कागज का इस्तेमाल भी नहीं होता.
ई-बुक्स में हजारों किताबें रखी जा सकती हैं. ये सहूलियत तो देता है, लेकिन क्या ये कागज से बनी किताबों की तुलना में पृथ्वी के लिए बेहतर विकल्प भी है?तस्वीर: Michelangelo Oprandi/CHROMORANGE/picture alliance

कागजी किताबों, इलेक्ट्रॉनिक किताबों और ऑडियोबुक्स के पाठक साल 2030 तक अपने पसंदीदा साहित्य पर करीब 174 अरब रुपये खर्च करेंगे. हर साल करीब 40 लाख नई किताबें बाजार में आ रही हैं. इसके चलते पाठकों के पास विकल्पों की भरमार है. लेकिन इन सब को पढ़ने से पर्यावरण और जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? क्या हमें जंगलों और गर्म होती धरती को बचाने के लिए कागजी किताबों की बजाय ई-बुक्स पढ़ना शुरू कर देना चाहिए?

किताबों के लिए काटे जाते हैं पेड़

करीब 600 साल पहले योहानेस गुटेनबर्ग ने जर्मनी में प्रिंटिग प्रेस का अविष्कार किया था. तब से दुनिया भर में बड़ी मात्रा में किताबें छापी जा रही हैं. गूगल के एक अध्ययन के मुताबिक, साल 1440 में प्रिंटिग प्रेस के अविष्कार से लेकर 2010 के बीच करीब 13 करोड़ हार्ड-कॉपी किताबें प्रकाशित हुईं.

किताबों में मौजूद ज्ञान और कथा-कहानियां मानवता के लिए वरदान साबित हुईं. लेकिन इन किताबों को छापने के लिए बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए. जंगलों से काटे गए ये पेड़ वन्यजीवों की मदद करते हैं, साफ हवा पैदा करते हैं और कार्बन इकट्ठा करने में मदद करते हैं. यही कार्बन वातावरण में छोड़े जाने पर जलवायु परिवर्तन की वजह बनता है.

पेंगुइन रैंडम हाउस यूके, किताबें छापने वाली एक बड़ी कंपनी है. यह हर साल लगभग 15 हजार किताबें प्रकाशित करती है. कंपनी का दावा है कि अब वह अपनी किताबें छापने के लिए टिकाऊ कागज का इस्तेमाल कर रही है.

कर्टनी वार्ड-हंटिंग, इस कंपनी में सीनियर सस्टेनिबिलिटी प्रोडक्शन मैनेजर हैं. वह बताती हैं कि उनकी किताबों में इस्तेमाल होने वाला 100 फीसदी कागज फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (एफएससी) से प्रमाणित है. यह संस्था टिकाऊ या दोबारा उग सकने वाली लकड़ी की पैदावार का प्रबंधन करने का दावा करती है. यह लकड़ी भावी पीढ़ियों के लिए जंगलों को बचाती है.

पाकिस्तान के रावलपिंडी में सड़क किनारे लगी एक किताब की दुकान. यह बाजार आधी सदी से भी ज्यादा पुराना है.
डिजिटल माध्यमों पर पढ़ने की आदत बढ़ी है, लेकिन इसके बावजूद पारंपरिक शैली में छपी कागजी किताबों का चाव अब भी कायम है. तस्वीर: DW

हालांकि, वन संरक्षण के मामले में एफएससी के रिकॉर्ड की आलोचना हुई है. ग्रीनपीस जैसे पर्यावरण समूह ने संस्था पर ग्रीनवॉशिंग का आरोप लगाया है. ग्रीनवॉशिंग में किसी उत्पाद या सेवा के पर्यावरणीय फायदों के बारे में झूठे और भ्रामक बयान दिए जाते हैं.

कर्टनी वार्ड-हंटिंग मानती हैं कि पेंगुइन रैंडम हाउस से होने वाले जलवायु प्रभाव का 70 फीसदी से अधिक प्रिंटरों और पेपर मिलों की वजह से होता है. वह कहती हैं कि पेंगुइन हाउस से छपने वाली एक औसत किताब 330 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओटू) पैदा करती है. इसमें ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं. यह एक कप कॉफी बनाने में पैदा होने वाले कार्बन जितना है. इस आंकड़े में एक किताब के छपने से लेकर उसके ग्राहक तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया शामिल है. इसमें मशीनों की कार्य कुशलता, नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग और स्याही की किस्मों का भी ध्यान रखा गया है.

इसकी तुलना में एक औसत पेपरबैक किताब जलवायु को तीन गुना अधिक प्रभावित करती है. यह करीब एक किलोग्राम सीओटू और दूसरी ग्रीनहाउस गैस पैदा करती है. यह 122 स्मार्टफोन को चार्ज करने और दो कप कॉफी बनाने के बराबर है.

किताबों के डेटा विश्लेषक, ‘वर्ड्स रेटेड' के मुताबिक, "कागज निर्माण में आए नवाचारों ने किताब छपने से पैदा होने वाले कार्बन फुटप्रिंट को कम कर दिया है. लेकिन अभी भी जलवायु पर असर काफी ज्यादा है क्योंकि हर साल दुनिया भर में किताबों की लगभग 220 करोड़ कॉपियां बेची जाती हैं.”

अगर मान लिया जाए कि हर किताब से 330 ग्राम सीओटू और दूसरी गैसें निकलती हैं, तो इस हिसाब से हर साल किताबों की वजह से सात लाख टन से ज्यादा सीओटू पैदा होता है. यह करीब डेढ़ लाख घरों को साल भर बिजली देने के बराबर है. या, डेढ़ लाख गाड़ियों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के समान है.

ई-रीडर का उत्पादन भी जलवायु अनुकूल नहीं

एक इलेक्ट्रॉनिक रीडिंग डिवाइस का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें हजारों किताबें आ सकती हैं और इसमें कागज का इस्तेमाल भी नहीं होता.

इससे ना सिर्फ जंगल बचते हैं, बल्कि लकड़ी से कागज बनाने में लगने वाली ऊर्जा भी बच जाती है. आईईए के मुताबिक, 2017 में वैश्विक औद्योगिक ऊर्जा उपभोग का छह फीसदी हिस्सा सिर्फ लुगदी बनाने में खर्च हुआ. वहीं, अकेले अमेरिका में ही हर साल करीब तीन करोड़ पेड़ किताबी कागज बनाने के लिए काटे जाते हैं.

इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक किताबों को आसानी से किसी भी डिवाइस में डाउनलोड किया जा सकता है. इसलिए इनके परिवहन की जरूरत नहीं होती. ई-रीडर के बाजार में अमेजन किंडल सबसे बड़ा खिलाड़ी है. वर्ड्स रेटेड के मुताबिक, किंडल के जरिए हर साल करीब 48.7 करोड़ ई-बुक्स बेची जाती हैं. अमेजन ने डीडब्ल्यू को बताया कि हर महीने दुनिया भर में करीब 50 लाख लोग किंडल ऐप या डिवाइस पर किताबें पढ़ते हैं.

युवाओं और किशोरों में ई-बुक्स की लोकप्रियता बढ़ी है.
डिजिटल ई-रीडर्स लाखों पेड़ों को कटने से बचा सकते हैं. तस्वीर: Monkey Business/Shotshop/Imago Images

हालिया सालों में युवा मिलेनियल और जेनरेशन जेड के पाठकों में ई-बुक्स की लोकप्रियता बढ़ी है. जर्मन डेटा प्लेटफॉर्म स्टेटिस्टा के मुताबिक, 2027 तक ई-बुक्स पाठकों की संख्या 110 करोड़ तक पहुंच सकती है. कई पाठक कागजी किताबों से डिजिटल किताबों पर शिफ्ट हो रहे हैं. क्या इससे पर्यावरण और जलवायु से संबंधित फायदे बढ़ेंगे?

डिजिटल उपकरणों के अपने कुछ नुकसान हैं. इनके उत्पादन में बहुत ज्यादा पानी और ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. इनकी बैटरी बनाने के लिए कॉपर, लिथियम और कोबाल्ट जैसी दुर्लभ धातुओं और खनिजों को निकाला जाता है. ये उपकरण आमतौर पर प्लास्टिक से बने होते हैं, जो जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होती है.

किताबों की तरह यहां भी उत्पादन चरण सबसे ज्यादा जलवायु प्रभाव के लिए जिम्मेदार है. लेकिन यह यहीं नहीं रुकता. ई-रीडर को इस्तेमाल करने के लिए उन्हें नियमित अंतराल पर चार्ज करना पड़ता है. ई-बुक्स को स्टोर करने और भेजने के लिए डेटा सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर रहना पड़ता है.

कागज की किताबों के साथ यह समस्या नहीं होती. उनके लिए इंटरनेट कनेक्शन और चार्जिंग की जरूरत नहीं होती. हार्ड कॉपी दशकों तक चल सकती हैं और कई लोगों के साथ साझा की जा सकती हैं. दूसरी तरफ, एक ई-रीडर तीन से पांच साल तक ही चलता है. किताबों का निस्तारण करना और रिसाइकल करना भी उतना जटिल नहीं होता. हालांकि, अमेजन जैसी कुछ कंपनियां भी अपने उपकरणों के लिए रिसाइक्लिंग कार्यक्रम चलाती हैं, जिससे ई-कचरा ना बढ़े.

आंकड़ों के मुताबिक, किंडल के जरिए सालाना 48 करोड़ से ज्यादा ई-बुक्स बेची जाती हैं.
ई-रीडर के बाजार में अमेजन किंडल सबसे बड़ा खिलाड़ी है. तस्वीर: AP

धरती के लिए क्या बेहतर?

पारंपरिक कागज की किताबें ई-बुक्स की तुलना में बेहद लोकप्रिय हैं. 2021 में अमेरिका में अपने डिजिटल समकक्षों की तुलना में किताबों की बाजार में हिस्सेदारी लगभग दोगुनी थी. यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो में असोसिएट प्रोफेसर एरी अमासावा के मुताबिक, दोनों ही तरह की किताबों का पर्यावरणीय प्रभाव जटिल है.

अमासावा ने साल 2017 में एक अध्ययन किया था, जिसमें पारंपरिक किताबों और ई-रीडर पर पढ़ने से होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की तुलना की गई थी. उन्होंने पाया कि अगर डिवाइस पर तीन साल के भीतर 15 या उससे ज्यादा किताबें पढ़ी जाएं, तो ई-रीडर जलवायु के लिए ज्यादा बेहतर है. हालांकि, आईपैड के मामले में तीन सालों में 25 किताबें पढ़नी होंगी.

इसका मतलब है कि किंडल पर साल में एक या दो किताबें पढ़ने से उत्सर्जन में ज्यादा कटौती नहीं होगी. लेकिन जब पाठक दोनों ही माध्यमों से पढ़ेंगे तो क्या होगा? अमासावा कहती हैं कि बहुत से लोग अभी भी कागज की किताबें पढ़ना चाहते हैं, भले ही वे कुछ ई-बुक्स भी पढ़ते हों. लगभग 33 फीसदी अमेरिकी पाठक इसी श्रेणी में आते हैं.

नियमित तौर पर पढ़ने वालों के लिए एक ई-रीडर पर्यावरण के लिहाज से बेहतर हो सकता है. वहीं, हार्ड कॉपी के शौकीनों को अमासावा सलाह देती हैं कि केवल वही किताबें खरीदें, जो आप वास्तव में पढ़ें. साथ ही उन्हें पढ़ने के बाद रिसाइक्लिंग के लिए भेज दें.

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