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अंगदान में मील का पत्थर बनेगा ऑर्गनएक्स

कार्ला ब्लाइकर
५ अगस्त २०२२

शोधकर्ताओ ने ऐसी प्रणाली विकसित की है जो कोशिका को क्षतिग्रस्त होने से रोक सकती है या उस प्रक्रिया को उलट सकती है. इससे उन अंगों की कोशिकाएं सलामत रह पाएंगी जिनकी जरूरत ट्रांसप्लांट यानी प्रत्यारोपण सर्जरी में पड़ती है.

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USA | Erstmals Schweineherz-Transplantation für einen Menschen
तस्वीर: Cover-Images/imago images

अंग प्रत्यारोपण, अविश्वसनीय तौर पर पेचीदा चिकित्सा प्रक्रिया है. जिन लोगों को अंगों की जरूरत है, उनकी मदद के लिए दान से हासिल मानव अंग पर्याप्त नहीं है. प्रतीक्षा सूचियां बहुत लंबी हैं. अगर आपको डोनर अंग मिल भी जाए तो उस सूरत में भी सबसे कठिन चीजों में से एक ये है कि आप तक वो सही सलामत हालत में पहुंच जाए, उसकी कोशिकाएं नष्ट न हो चुकी हों. लेकिन अब एक नयी प्रौद्योगिकी एक जीवित देह की नकल तैयार कर डोनर अंगो के बचे रहे पाने की मियाद को बढ़ाने में समर्थ है.

दसियों हजार लोगों को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है

अमेरिका में कम से कम 1,06,000 लोगों के नाम अंग प्रत्यारोपण की वेटिंग लिस्ट में शामिल हैं. हर नौ मिनट पर एक और व्यक्ति इसमें जुड़ जाता है. ये कहना है कि अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग का. हर रोज 17 लोग इंतजार करते करते दम तोड़ देते हैं.

दक्षिण अफ्रीका में, अंग और ऊतक दान को प्रोत्साहन देने के लिए गठित राष्ट्रीय संस्था ऑर्गन डोनर फाउंडेशन के मुताबिक, अमूमन 5,000 लोग अंग प्रत्यारोप का इंतजार कर रहे हैं. 2019 में देश भर के सर्जनों ने 356 अंग प्रत्यारोपित किए थे. इसमें हड्डी, त्वचा, कॉर्निया या हृदय के वाल्व जैसे टिश्यू यानी ऊतक प्रत्यारोपण शामिल नहीं हैं.

और जर्मनी में 2021 के आखिर तक मोटे तौर पर 8700 लोगों के नाम अंग प्रत्यारोपण सूची में दर्ज थे. ज्यादातर मामले गुर्दा प्रत्योरोपण के थे. संघीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के मुताबिक इनमें से करीब आधे लोग 2021 में वेटलिस्ट में आए थे और उसी साल सूची में दर्ज 826 मरीजों की मौत हो गई थी.

अंग प्रत्यारोपण की सर्जरी
अंग प्रत्यारोपण की सर्जरीतस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/picture alliance

मानव अंग प्रत्यारोपण कई फैक्टरों पर निर्भर है

एक मुकम्मल मिलान मिल पाना कठिन है. पहले, डोनर यानी अंग दान करने वाले व्यक्ति और उसे पाने वाले व्यक्ति के खून का टाइप और उनकी उम्र देखी जाती है. दूसरा, दानदाता और प्राप्तकर्ता एक दूसरे से बहुत ज्यादा दूर नहीं होने चाहिए क्योंकि एक अंग रक्त प्रवाह के बिना कुछ ही घंटे जिंदा रह पाता है.

लेकिन अब येल यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक तरीका विकसित किया है जो कोशिकाओं को मरने से रोकता है और कोशिका की मरम्मत कर देता है. ऑर्गनएक्स टेक्नोलजी की बदौलत, अंगों को शरीर के बाहर और लंबे समय तक जिंदा रख पाना मुमकिन हो पाएगा ताकि प्रत्यारोपण के लिए वे लंबी दूरियां तय कर सकें.

लैब में बनेंगे शरीर के अंग?

ऑर्गनएक्स कोशिकाओं को न मरने को 'कहता' है 

दो अगस्त 2022 को एक प्रेस ब्रीफिंग में वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया का विवरण देते हुए बताया कि वो "कोशिकाओं को न मरने का यकीन दिलाने की तरह है." लेकिन इसका मतलब क्या है?

अगर, मिसाल के लिए, एक व्यक्ति को दौरा पड़ता है या वो मर जाता है, तो शरीर में खून बहना बंद हो जाता है और हमारे अंगों के भीतर मौजूद कोशिकाओं को ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलने बंद हो जाते हैं जो उनके जीने के लिए जरूरी हैं. ऐसी स्थिति में कोशिकाएं इतनी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं कि उनकी मरम्मत भी नहीं हो पाती और इस तरह अंग ठंडे पड़ जाते हैं. लेकिन ऑर्गनएक्स टेक्नोलॉजी की टीम के सदस्य, ज्वोनिमिर व्रसेल्जा कहते हैं, "कोशिकाएं उतनी भी जल्दी नहीं मर जाती जैसा कि हम मानते हैं. इस अध्ययन की मदद से हमने ये दिखाया है कि अगर सही दखल दिया जाए तो हम कोशिकाओं को न मरने को कह सकते हैं."

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के शोधकर्तों ने करीब 100 सुअरों पर एक प्रयोग ये देखने के लिए किया कि मृत्यु जैसी स्थिति में रखने के एक घंटे बाद अगर ऑर्गनएक्स लगाया जाता है तो क्या तब कोशिका संरचनाओं को बचाया जा सकता है या कोशिका को हुए नुकसान को पलटा जा सकता है.

इस टेक्नोलजी के दो हिस्से हैं. एक तो वो उपकरण है जो किसी जीवित स्तनपायी के हृदय और फेफड़ों की हरकतों की नकल करता है और अंगों को खून और एक दवा के कॉकटेल का मिश्रण रवाना करता है. दूसरा है दवा का कॉकटेल यानी सिंथेटिक परफ्युसेट. ये द्रव 13 रासायनिक यौगिकों से मिलकर बना है और कोशिका मृत्यु और रक्त जमाव जैसे मामलों से निपटने के लिए पहले से चिकित्सा प्रचलन में मौजूद दवाएं भी इस द्रव में पड़ी रहती हैं.

पहले से बेहोश किए हुए सुअरों को, कथिच मृत्यु के एक घंटे बाद, ऑर्गनएक्स मशीन में टांग दिया जाता है. मशीन में सेंसर लगे होते हैं जो मेटाबोलिक और रक्तसंचार के मापदंडों के बारे में रीएल टाइम में सूचना भेजता है. उसके बाद ये सिस्टम, द्रव को जानवर के अंगों में छह घंटे तक पंप करता है. व्रसेल्जा कहते हैं कि प्रयोगों ने दिखाया कि "मृत्यु के कुछ समय बाद, हम कुछ खास कोशिका कार्यों को बहाल कर सकते हैं."

मानव अंगों पर अभी कोई ट्रायल नहीं

शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि अध्ययनों की ऋंखला में ये सिर्फ एक पहला कदम था और मानव अंगों को बचाने में इसका इस्तेमाल करने से पहले इस प्रौद्योगिकी से जुड़ी अभी और काफी शोध करने पड़ेंगे. एक बात तो यही है कि द्रव को मानव देह पर इस्तेमाल के लिए उस लिहाज से ढालना होगा. और इस प्रौद्योगिकी से एक पूरा समूचा अंग बचाने की बात भी अभी बाकी है. 

प्रेस ब्रीफिंग में अध्ययन के एक और लेखक स्टीफन लाथम ने कहा, "हम लोग ये नहीं दिखा पाए कि कोई सा भी अंग पूरी तरह बहाल हो पाया था और दूसरे सुअर में लगाने के लायक हो पाया था." लेकिन व्रसेल्जा कहते हैं कि उनसे हमे ये जरूर पता चला है कि हम आणविक स्तर पर कोशिका की मरम्मत चालू कर सकते हैं."

प्रत्यारोपण प्रक्रिया में ऑर्गनएक्स का उपयोग लाथम की नजर में "छोटी अवधि का एक भरोसेमंद लक्ष्य है." उनका कहना है कि एक बार ये प्रौद्योगिकी पूरी तरह विकसित कर ली जाएगी तो अंग दान करने वालों से अंग निकालना, शरीर के बाहर ऑर्गनएक्स से जोड़ना और लंबे समय तक स्टोर रखना या लंबी दूरियों में ले जाना संभव हो जाएगा.

जर्मनी की येना यूनिवर्सिटी में प्रायोगिक प्रत्यारोपण शल्य चिकित्सा विभाग की प्रमुख उटा डाहमन इस अध्ययन से नहीं जुड़ी हैं. वो बताती हैं, "ये प्रणाली और उससे हासिल ज्ञान, विभिन्न चिकित्सकीय उपयोगों में बड़े काम के साबित हो सकते हैं. लेकिन एक आशाजनक प्रायोगिक अध्ययन से एक नये चिकित्सा उत्पाद के उपयोग तक पहुंचने का सफर अभी बड़ा लंबा है."