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फेशियल रेकग्निशन तकनीक की तरफ बढ़ता भारत

३१ दिसम्बर २०१९

भारत दुनिया का सबसे बड़ा फेशियल रेकग्निशन डाटाबेस बनाने की योजना बना रहा है. चेहरा पहचानने वाली तकनीक का इस्तेमाल फिलहाल पुलिस, एयरपोर्ट और कॉफी शॉप में हो रहा है.

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Indien | Gesichtserkennung am Flughafen Hyderabad
तस्वीर: AFP/Getty Images/N. Seelam

दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित 'चायोस' चाय कैफे शॉप में दफ्तर का काम निपटा कर लोग बैठे चाय की चुस्कियों का मजा ले रहे हैं. आम तौर पर चायोस अपने ग्राहकों के लिए लॉयल्टी स्कीम का ऑफर देती है लेकिन आज नहीं. इस कैफे शॉप के बिलिंग काउंटर पर लिखा है, "चेहरा दिखाएं, फोन नंबर क्यों बताना, जब हम आपको चेहरे से पहचान सकते हैं."

'चायोस' ने अपने ग्राहकों के लिए हाल ही में फेशियल रेकग्निशन तकनीक की शुरुआत की है, जिसके जरिए ग्राहक बिना देरी किए कैफे शॉप के लिए ग्राहक फॉर्म आसानी से भर सकते हैं. इसी कैफे शॉप में काम करने वाली वेटेरेस सूर्या गुप्ता कहती हैं, "कुछ ग्राहकों को लगता है कि फेशियल रेकग्निशन तकनीक आधुनिक है." सूर्या आगे कहती हैं चायोस बदलते वक्त के साथ खुद भी बदल रही है. वह कहती हैं, "चायोस ऐसी पीढ़ी को पकड़ना चाहती है जो हर चीज तुरंत चाहती है."

साथ ही सूर्या बताती हैं उन्हें अपने चेहरे की पहचान देने में कोई दिक्कत नहीं है. नवंबर में जब चायोस ने पहली बार चेहरा पहचानने वाली तकनीक पेश की थी,  तब स्थानीय मीडिया ने रिपोर्ट किया की चायोस बिना सहमति के ग्राहकों के चेहरे की तस्वीरें ले रही है और इससे निजता के नियमों का उल्लंघन हो रहा है. विवाद के बाद चायोस ने ग्राहकों को इस योजना से बाहर रहने का विकल्प देते हुए इसे दोबारा लॉन्च किया है.

फेशियल रेकग्निशन तकनीक इस्तेमाल करने वाली चायोस अकेली कैफे शॉप नहीं है, भारत बड़े पैमाने पर फेशियल रेकग्निशन तकनीक स्थापित करने जा रहा है जिससे अपराधियों को पकड़ने, लापता की शिनाख्त, अज्ञात शवों की पहचान मुमकिन हो पाएगी. इस योजना ने अधिकार कार्यकर्ताओं को चिंतित कर दिया है, जो नागरिकों की आजादी को लेकर जोखिमों के बारे में सोचकर शंकाओं से घिरे हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ऐसे सिस्टम को विकसित करने के लिए जनवरी से बोली मंगा रहा है, जिसमें चेहरे की पहचान का केंद्रीय डाटाबेस बनेगा. केंद्रीय डाटाबेस में करीब 5 करोड़ तस्वीरें रहेंगी जो कई डाटा केंद्रो जैसे पुलिस रिकॉर्ड, अखबार, पासपोर्ट और सीसीटीवी नेटवर्क से ली गई होंगी. अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि आधार का भी डाटा इसके लिए इस्तेमाल होगा या नहीं. आधार के तहत सरकार ने देश की पूरी आबादी का बायोमीट्रिक डाटा लिया है.

आलोचक सरकार पर आधार के जरिए निगरानी का आरोप लगाते आए हैं.

गैर-लाभकारी संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता कहते हैं कि अब तक स्पष्ट नहीं कि डाटा किस तरह से जमा किया जाएगा और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाएगा या फिर डाटा के भंडारण को कैसे नियमित किया जाएगा. अपार कहते हैं, "हमें इस बात का डर है कि सिस्टम का इस्तेमाल जन निगरानी के लिए किया जा सकता है. भारत में निजता का कोई कानून नहीं है और ना ही कोई नियम जो इस तरह की पेशकश करता हो."

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चीन और रूस बड़े पैमाने पर तकनीक का इस्तेमाल करता है. तस्वीर: Colourbox/S. A. Khakimulli

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वरिष्ठ अधिकारी प्रसून गुप्ता कहते हैं कि ब्यूरो इन आलोचनाओं की ओर ध्यान दे रहा है. गुप्ता कहते हैं, "यह बहुत बड़ा कार्यक्रम है, हमें मालूम है कि इसे बेहतर तरीके से अमल में लाया जाना चाहिए." हालांकि योजना में देरी भी हो गई. उसका कारण इस बात पर सहमति नहीं बन पाना है कि विदेशी कंपनियों को जिनके पास भारतीय कंपनियों की तुलना में बेहतर तकनीक है, बोली के लिए आमंत्रित की जाए या नहीं.

पुलिस बल पहले ही फेशियल रेकग्निशन तकनीक इस्तेमाल शुरू कर चुका है, कुछ एयरपोर्ट पर भी इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. भारतीय रेल इस तकनीक के इस्तेमाल की योजना बना रहा है. भारतीय अधिकारियों का कहना है कि फेशियल रेकग्निशन देश की जरुरत है क्योंकि यहां पुलिस की संख्या बहुत कम है.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक एक लाख नागिरकों पर पुलिस के 144 जवान हैं जो कि दुनिया में सबसे कम अनुपात है. इस टेक्नोलॉजी के तहत शहरों में सीसीटीवी का जाल बिछाना होगा, जैसा कि दिल्ली में फिलहाल हो रहा है. दिल्ली सरकार के प्रवक्ता नगेंद्र शर्मा कहते हैं, "सीसीटीवी निगरानी में दिल्ली दुनिया की अग्रणी शहर बन जाएगी. हम दिल्ली में तीन लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने का सपना साकार कर रहे हैं. एक लाख 40 हजार कैमरे पहले ही लगाए जा चुके हैं."

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यह रूस और चीन के बाद सबसे बड़ा निगरानी देश बनने जा रहा है. ऐसा लगता है कि भारत ने निगरानी को अपना लिया है, क्योंकि अन्य देशों में ऐसी योजनाओं पर विरोध होने लगते हैं. 

एए/आरपी (डीपीए)

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