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अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशनः अंतरिक्ष में 25 बरस का सफर

जुल्फिकार अबानी
२१ नवम्बर २०२३

25 बरसों में धरती के 1,40,000 चक्कर लगा चुका अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन यानी आइएसएस, अब भी विज्ञान की दुनिया में शांतिपूर्ण वैश्विक सहयोग की मिसाल है.

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अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की 30 मार्च 2022 में ली गई तस्वीर
आइएसएस पिछले 25 बरस से अंतरराष्ट्रीय सहयोग की मिसाल बना हुआ हैतस्वीर: Roscosmos Space Agency Press Service/AP Photo/picture alliance

हमें खबर भी नहीं कि आईएसएस 24 घंटे में 16 बार हमारे सिर के ऊपर से गुजरता है. यही नहीं 439 किलोमीटर की ऊंचाई पर 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखना भी उसकी दिनचर्या का हिस्सा है. इसे धरती से देखना और दिन में किसी भी वक्त उसकी स्थिति का पता लगाना मुमकिन है. लेकिन आइएसएस और उस पर सवार वैज्ञानिक क्या करते हैं, उस पर किसी की नजर नहीं जाती. इस स्टेशन की मदद से ऐसी बहुत सारी खोजेंहुई हैं जो धरती पर जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं.

यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, शांति और सहयोग के लिए दुनिया के सबसे सफल स्थानों में से एक है, युद्ध के माहौल में भी. यह वाकई में पिछले 25 सालों में सबसे सुरक्षित जगह साबित हुई है. जानिए आईएसएस की कुछ खास बातें.

अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन
आइएसएस रहने और काम करने के लिए कई हिस्सों में बंटा हुआ है.तस्वीर: NASA TV

कब हुई आइएसएस की शुरुआत

इस स्पेस स्टेशन का पहला सेगमेंट, जरया कंट्रोल मॉड्यूल रूसी था जो 20 नवंबर, 1998 को लॉंच किया गया. जरया ने ईंधन स्टोरेज और बैटरी पावर पहुंचाई और आइएसएस पहुंचने वाले दूसरे अंतरिक्ष यानों के लिए डॉकिंग जोन की भूमिका निभाई. इसके एक महीने बाद, 4 दिसंबर, 1998 को अमेरिका ने यूनिटी नोड 1 मॉड्यूल लॉंच किया. इन दोनों मॉड्यूल के जरिए ही स्पेस लैबोरेट्री ने काम करना शुरु किया. इसके बाद स्टेशन खड़ा करने के लिए 42 असेंबली फ्लाइट की मदद से, आइएसएस वह बन पाया जैसा वह आज है.

इस पर रहने वाले शुरुआती अंतरिक्षयात्रियों में नासा के बिल शेपर्ड और रॉसमॉस के यूरी गिडजेंको व सर्गेइ क्रिकालेव शामिल हैं. उस वक्त से आइएसएस पर हमेशा अंतरिक्षयात्री रहे हैं.

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कितना बड़ा है आइएसएस

आइएसएस रहने और काम करने के लिए कई हिस्सों में बंटा हुआ है. इसमें सोने के लिए छह क्वाटर, दो बाथरूम, एक जिम और एक 360 डिग्री का दृश्य दिखाने वाली खिड़की है. नासा के मुताबिक, इसका माप करीब 109 मीटर है यानी 357 फीट, जो एक अमेरिकी फुटबॉल फील्ड के बराबर है. अगर आप तैराकी का शौक रखते हैं तो समझिए कि यह एक ओलिंपिक स्विमिंग पूल की लंबाई का दोगुना है.

इसका सोलर एरे विंगस्पैन भी 109 मीटर का है. अगर इसकी तुलना कमर्शियल एयरक्राफ्ट से की जाए तो एअरबस ए380 का विंगस्पैन 79.8 मीटर है. यही नहीं इस स्पेस स्टेशन के भीतर करीब 13 किलोमीटर लंबी इलेक्ट्रिकल तारों का जाल है.

आइएसएस एक दिन की अवधि में धरती के कई चक्कर लगाता है. बिल्कुल सटीक शब्दों में कहें तो हर 90 मिनट पर यह, 8 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चक्कर काटता है.

स्टेशन पर क्या करते हैं एस्ट्रॉनॉट

जब अंतरिक्षयात्री किसी एक्सपेरीमेंट में नहीं लगे होते तब वह सामान्य स्पेसवॉक यानी अंतरिक्ष की सैर पर निकलते हैं ताकि स्टेशन में नई चीजें जोड़ी जा सकें जैसे रोबोटिक हाथ या फिर रख-रखाव. कई बार ऐसा भी हुआ है कि उन्हें अंतरिक्ष में पड़े मलबे की वजह से हुए छेदों का परीक्षण करके उन्हें ठीक करना पड़ा.

अंतरिक्षयात्री, सेहत से जुड़ी कड़ी दिनचर्या का पालन करते हैं. उन्हें अपनी मांसपेशियों और हड्डियों को कमजोर होने से बचाना होता है, जिसकी वजह माइक्रोग्रैविटी या गुरुत्वाकर्षण की कमी है. इसका मतलब है कि उन्हें हर दिन कम से कम दो घंटे तक विशेष मशीनों पर कसरत करनी होती है जिसमें ट्रेडमिल पर दौड़ना भी शामिल है. लेकिन जैसे-जैसे रिसर्चर अंतरिक्ष में इंसानों के रहने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, जैसे चंद्रमा या मंगल पर, उससे अंतरिक्षयात्रियों की रोजाना कसरत के जरिए अंतरिक्ष में मानव शरीर पर पड़ने वाले असर के बारे में भी नई समझ बन रही है. क्या होगा अगर इंसान बिना गुरुत्वाकर्षण के लंबे वक्त तक अंतरिक्ष में रहें? क्या हमारे शरीर में ताकत बनी रहेगी या वह धरती पर लौटने के लिए बेहद कमजोर हो जाएगा?

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आइएसएस पर खोज से धरती का क्या फायदा

अंतरिक्षयात्रियों ने स्टेशन पर हजारों प्रयोग किए हैं. कई बार तो वह खुद पर ही एक्सपेरीमेंट करते हैं, जैसे अपनी सेहत मॉनीटर करना, खान-पान या फिर सोलर रेडिएशन के असर की पड़ताल. इसके अलावा, वह धरती पर मौजूद वैज्ञानिकों के लिए भी प्रयोग करते हैं. इनकी वजह से बहुत सारी वैज्ञानिक सफलताएं हासिल हुई हैं.

अल्जाइमर से लेकर पार्किंसन, कैंसर, अस्थमा या दिल की बीमारियां हों, इन सभी पर स्पेस में शोध हुआ है. वैज्ञानिक कहते हैं कि कुछ प्रयोग तो केवल अंतरिक्ष में ही बेहतर किए जा सकते हैं क्योंकि माइक्रोग्रैविटी में कोशिकाएं उसी तरह काम करती हैं जैसे इंसानी शरीर के अंदर, लेकिन धरती की दशाएं पैदा करना मुश्किल होता है.

ऐसी कईं खोजें हुई हैं जिनसे दवाएं बनाने, पानी साफ करने के सिस्टम, मांसपेशियों और हड्डियों की कमजोरियां दूर करने के तरीके और खाना उगाने की तकनीक में भी मदद मिली है.

कब तक काम करेगा स्टेशन

आइएसएस के भविष्य को लेकर अनिश्चितताएं तब पैदा हुईं जब रूस ने साल 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने रूस के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग से कदम पीछे खींच लिए और रूस ने कहा कि वह आइएसएस छोड़कर अपना स्पेस स्टेशन बनाएगा. हालांकि सिर्फ युद्ध ही एक मसला नहीं है, अंतरिक्ष में कदम रख चुके देश चाहते हैं कि वह स्पेस में अपनी अलग पहचान स्थापित करें. इसमें जापान, चीन, भारत और यूएई समेत दूसरे देश भी हैं.

अमेरिका और यूरोप ने कहा है कि वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को 2030 तक चलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन आइएसएस के बाद की दुनिया के लिए भी तैयारी चल रही है. नासा लगभग पूरी तरह से अपने आर्टेमिस प्रोग्राम पर ध्यान लगाए हुए है और चांद पर इंसान बसाने का इरादा रखती है. दूसरी ओर, यूरोपीय स्पेस एजेंसी अपना नया स्टेशन बनाने की तैयारियों में लगी है, जिसका नाम स्टारलैब बताया जा रहा है.

वाकई स्पेस में क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी.

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