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लाठी-डंडे से क्यों लड़ते हैं भारत और चीन के सैनिक

स्वाति मिश्रा
१५ दिसम्बर २०२२

बीते दिनों अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत और चीन के सैनिकों के बीच एकबार फिर हाथापाई हुई है. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि दोनों ओर के कुछ सैनिक जख्मी हुए हैं.

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यह तवांग का प्रवेश द्वार है. तवांग ऐतिहासिक तौर पर तिब्बत का हिस्सा था. जनवरी 1950 में चीन ने तिब्बत के भूभाग पर दावा किया. अक्टूबर 1950 में चीन की सेना ने तिब्बत के चामदो पर कब्जा कर लिया. नवंबर 1950 में दलाई लामा ने यह मामला यूएन में रेफर किया. यूएन जनरल असेंबली ने तिब्बत पर किए गए चीन के हमले की निंदा की. इसके बाद 1951 में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रतिनिधि दल को तवांग भेजा. बताया जाता है कि भारत सरकार की ओर से भेजे गए प्रतिनिधि ने तवांग का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया और इसमें उन्हें स्थानीय जनता का भी सहयोग मिला.
यह तवांग का प्रवेश द्वार है. तवांग ऐतिहासिक तौर पर तिब्बत का हिस्सा था. जनवरी 1950 में चीन ने तिब्बत के भूभाग पर दावा किया. अक्टूबर 1950 में चीन की सेना ने तिब्बत के चामदो पर कब्जा कर लिया. नवंबर 1950 में दलाई लामा ने यह मामला यूएन में रेफर किया. यूएन जनरल असेंबली ने तिब्बत पर किए गए चीन के हमले की निंदा की. इसके बाद 1951 में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रतिनिधि दल को तवांग भेजा. बताया जाता है कि भारत सरकार की ओर से भेजे गए प्रतिनिधि ने तवांग का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया और इसमें उन्हें स्थानीय जनता का भी सहयोग मिला. तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

9 दिसंबर, 2022 को तवांग बॉर्डर पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई. 2020 में भी भारत और चीन के सैनिक गलवान में भिड़े थे. इन दोनों घटनाओं के बीच कई अपुष्ट वीडियो वायरल हुए हैं, जिसमें यह बताया जाता है कि भारत और चीन के सैनिक लड़ रहे हैं. भले ही उन वीडियो के बारे में यह ना पता चल सके कि वे कब के हैं और कहां के हैं, लेकिन उनमें एक बात कॉमन मिलती है. इन वीडियो में बंदूकों के बजाय हाथ-पैर, लाठी-डंडे वगैरह से लड़ाई दिखती है.

पहली बार में यह थोड़ा अजीब लगता है कि दो देशों की सेनाएं आज के दौर में भी सीमा पर गोली-बारूद की जगह लाठी-डंडे से लड़ रही हों. तो क्या वजह है कि भारत-चीन सीमा पर किसी झड़प में सैनिक लाठी-डंडे का इस्तेमाल करते हैं. इसकी वजह है भारत और चीन के बीच का समझौता.

कब हुआ समझौता

29 नवंबर, 1996 को नई दिल्ली में भारत और चीन में एक समझौता हुआ. इस समझौते का अंग्रेजी में टाइटल है - Agreement Between the Government of the Republic of India and the Government of the People's Republic of China on Confidence-Building Measures in the Military Field Along the Line of Actual Control in the India-China Border Areas

समझौते में आर्टिकल 6 का पहला बिंदु है कि दोनों पक्षों में से कोई भी लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल के दो किलोमीटर के अंदर गोली चलाने, खतरनाक केमिकल इस्तेमाल करने, धमाके करने और बंदूक या धमाकों से शिकार करने जैसे काम नहीं करेगा. यह प्रतिबंध स्मॉल आर्म्स फायरिंग रेंज में रूटीन फायरिंग पर लागू नहीं होता.

आर्टिकल 6 का दूसरा बिंदु है कि अगर विकास के कार्यों की वजह से नियंत्रण रेखा के दो किलोमीटर के अंदर ब्लास्ट करने की जरूरत हो, तो डिप्लोमैटिक चैनल या बॉर्डर पर्सनल मीटिंग के जरिए बताया जाना चाहिए और बेहतर होगा कि इसे 5 दिन पहले बताया जाए.

आर्टिकल 6 का तीसरा बिंदु है कि गोली-बारूद के साथ अभ्यास में यह ध्यान रखा जाए कि कोई गोली या मिसाइल दुर्घटनावश भी बॉर्डर के दूसरी तरफ ना जाए और इससे दूसरी तरफ किसी व्यक्ति या प्रॉपर्टी को नुकसान ना पहुंचे.

आर्टिकल 6 का चौथा बिंदु है कि अगर एलएसी के अलाइनमेंट में मतभेद या किसी और वजह से दोनों पक्षों का आमना-सामना हो, तो वे खुद पर काबू रखेंगे. हालात बिगड़ने से बचाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएंगे. दोनों पक्ष डिप्लोमैटिक या/और उपलब्ध दूसरे माध्यमों के जरिए मामले की समीक्षा करेंगे और तनाव बढ़ने से रोकेंगे.

हालिया घटनाओं का संकेत

भौगोलिक दृष्टि से वास्तविक नियंत्रण रेखा काफी दुरूह है. सीमा को लेकर मतभेद बने रहते हैं. ऐसे में दोनों देशों का गोली-बारूद इस्तेमाल ना करने का समझौता किसी बड़े तनाव को रोकने में काफी कारगर रहा है. हालांकि पहले गलवान और अब तवांग सेक्टर में हुई बड़ी झड़प के संदर्भ में एक चिंता की बात यह है कि समझौता बेशक अब भी बरकरार हो, लेकिन दोनों पक्षों के बीच उसे लेकर आग्रह कम होता दिख रहा है. बात बहस में बदल रही है, और बहस हाथापाई में.

ऐसे में दोनों ओर से सैनिक आक्रामक दिखते हैं और इसी का एक नतीजा हाथापाई की ऐसी घटनाओं के रूप में सामने आता है. भले ही दोनों ओर के गश्ती सैनिक अब भी डंडे और स्पाइक्स से ही लड़ रहे हों, लेकिन इसमें केवल जख्मी होने का जोखिम नहीं रहा. गलवान में हुई जवानों की मौतें इन झड़पों के लगातार हिंसक होते जा रहे स्वभाव की मिसाल है. तवांग सेक्टर में हुई हालिया हाथापाई के बाद भारतीय सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा एक अपुष्ट वीडियो भी इसी मिजाज का है. वीडियो कम से कम एक साल पुराना है. विशेषज्ञ इसे पूर्वी इलाके का ही बता रहे हैं, लेकिन मौके और समय की सटीक जानकारी का अभाव है.

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