1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
इतिहासफ्रांस

54,000 साल पहले निएंडरथालों के यूरोप में गए थे हमारे पूर्वज

१० फ़रवरी २०२२

हम सब होमो सेपियन्स हैं. इंसानों की सबसे बुद्धिमान और आखिरी बची प्रजाति. लेकिन हमारे पूर्वज दुनियाभर में कैसे फैले, इसे लेकर एक अहम जानकारी हाथ लगी है.

https://p.dw.com/p/46nKL
हम सभी होमो सेपियन्स हैं, जो इंसानों की सबसे बुद्धिमान और आखिरी बची प्रजाति हैं. अब एक शोध में जानकारी मिली है कि हमारे पूर्वज 40 हजार नहीं, बल्कि 54 हजार साल पहले निएंडरथलों के इलाकों यानी यूरोप और पश्चिमी एशिया में दाखिल हुए थे.
खोज बताती है कि होमो सेपियन्स करीब 54 हजार साल पहले पश्चिमी यूरोप में आ चुके थे.तस्वीर: Federico Gambarini/dpa/picture alliance

विज्ञान की भाषा में हम लोग आधुनिक इंसान हैं. अंग्रेजी में कहें, तो होमो सेपियन्स, जिनके पूर्वज अफ्रीका में रहते थे. दुनियाभर में हुई अब तक हुई पुरातात्विक खोजों में जो कुछ हाथ लगा है, उससे जानकार इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हमारे सबसे करीबी रिश्तेदार होमो निएंडरथल थे. ये यूरोप और पश्चिमी एशिया में रहते थे. असल में 6 लाख साल पहले अफ्रीका में रहनेवाले इंसानों का ही एक धड़ा यूरोप चला गया था, जो एक थोड़ी अलग प्रजाति में विकसित हो गया था.

अब से करीब 40 हजार साल पहले निएंडरथाल विलुप्त हो गए. ऐसा क्यों हुआ, इसके पीछे कई कयास लगाए जाते हैं. कुछ जानकार कहते हैं कि वे बड़ी आंखों की वजह से विलुप्त हो गए. कुछ कहते हैं कि वे खाने की कमी की वजह से खत्म हो गए. वहीं कुछ जानकारों का अनुमान है कि 45 हजार साल पहले जब हमारे पूर्वजों ने अफ्रीका से यूरोप का रुख किया, तो दोनों प्रजातियों के बीच हुए संघर्ष में आखिरकार निएंडरथाल कमजोर साबित हुए और धरती से खत्म हो गए. हालांकि, कुछ जानकार दोनों प्रजातियों में संघर्ष के अनुमान को सिरे से खारिज करते हैं.

हम सभी होमो सेपियन्स हैं, जो इंसानों की सबसे बुद्धिमान और आखिरी बची प्रजाति हैं. अब एक शोध में जानकारी मिली है कि हमारे पूर्वज 40 हजार नहीं, बल्कि 54 हजार साल पहले निएंडरथलों के इलाकों यानी यूरोप और पश्चिमी एशिया में दाखिल हुए थे.
निएंडरथल महिलाओं की एक काल्पनिक प्रतिकृति, जिसमें वे खुले में काम करती दिखाई गई हैं.तस्वीर: imago images

नया शोध क्या बताता है

अब 'साइंस एडवांसेस' में पुरातत्व से जुड़ी एक स्टडी छपी है. इसमें दावा किया गया है कि होमो सेपियन्स के यूरोप जाने के बारे में हम अब तक जो अनुमान लगाते आए हैं, वे उससे कहीं पहले निएंडरथालों के इलाके में दाखिल हो चुके थे. फ्रांस की तुलूस यूनिवर्सिटी के लूडोविक स्लिमक के नेतृत्व में पुरातत्वविदों और जीवाश्म विज्ञानियों ने एक नई खोज की है. इनकी खोज बताती है कि होमो सेपियन्स करीब 54 हजार साल पहले पश्चिमी यूरोप में आ चुके थे.

इस शोध की सबसे अहम खोज यह है कि इंसानों की ये दोनों प्रजातियां मैंडरिन गुफा में एक साथ भी मौजूद रही हैं. आज यह गुफा दक्षिणी फ्रांस के रोन इलाके में पड़ती है. इस इलाके में सबसे पहले 1990 में खुदाई की गई थी. पुरातात्विक खोजों के लिहाज से यह बड़ी अहम जगह है, क्योंकि इसमें परत दर परत इंसानों का 80 हजार साल पुराना अतीत दफ्न है.

किस आधार पर किया जा रहा दावा

स्लिमक मैंडरिन को निएंडरथालों का पॉम्पेई करार देते हैं. फर्क बस इतना है कि यहां पॉम्पेई की तरह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई थी. यहां फ्रांस के भूमध्यसागरीय तटों पर चलने वाली ठंडी उत्तरी-पूर्वी हवा के साथ बालू उड़कर आती है. इसी की परतों के नीचे हजारों साल का इतिहास दबा है. स्लिमक की टीम ने 'ई लेयर' नाम की एक परत खोजी है, जिसमें उन्हें कम से कम 1,500 कट वाला एक नुकीला पत्थर मिला है. इसमें इतनी बारीक कारीगरी की गई है, जितनी इसके आसपास के किसी नुकीले पत्थर या ब्लेड में नहीं मिलती है.

यह भी पढ़ें: इंसानों की वजह से विलुप्त हुए गुफा में रहने वाले भालू

निएंडरथालों पर खूब शोध कर चुके स्लिमक बताते हैं कि ये टुकड़े बहुत छोटे हैं. कुछ तो एक सेंटीमीटर से भी छोटे हैं. निएंडरथालों के समाज में अमूमन इतना बारीक काम देखने को नहीं मिलता है. स्लिमक का अनुमान है कि ये तीरों के सिरे रहे होंगे, जो उस समय तक यूरोप में रहनेवाले लोग इस्तेमाल नहीं करते होंगे.

साल 2016 में स्लिमक और उनकी टीम हार्वर्ड के पीबॉडी म्यूजियम गई थी. यहां वे अपनी खोजों की तुलना उन जीवाश्मों से करना चाहते थे, जो माउंट लेबनान के केसार अकिल में मिले थे. भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित यह जगह होमो सेपियन्स का विस्तार समझने के लिहाज से बेहद अहम है. म्यूजियम में मौजूद जीवाश्मों के साथ अपनी खोजों की तुलना करने के बाद स्लिमक को यकीन हो गया कि मैंडरिन की गुफा में उन्हें जो चीजें मिलीं, वो यूरोप में होमो सेपियन्स की शुरुआती आमद की पुष्टि करती हैं.

हम सभी होमो सेपियन्स हैं, जो इंसानों की सबसे बुद्धिमान और आखिरी बची प्रजाति हैं. अब एक शोध में जानकारी मिली है कि हमारे पूर्वज 40 हजार नहीं, बल्कि 54 हजार साल पहले निएंडरथलों के इलाकों यानी यूरोप और पश्चिमी एशिया में दाखिल हुए थे.
होमो हाइडेलबर्गेन्सिस का निचला जबड़ा, जो 1907 में खुदाई में मिला था.तस्वीर: Hendrik Schmidt/ZB/dpa/picture alliance

सबसे बड़ा सुबूत क्या है

स्लिमक के दावे का आधार है दूध का वह दांत, जो उन्हें 'ई-लेयर' में मिला. शोधकर्ताओं को मैंडरिन की गुफा में कुल नौ दांत मिले, जो छ: अलग-अलग लोगों के हैं. ये दांत बोर्दू यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी क्लेमेन्ट जेनॉली को सौंपे गए थे. माइक्रो-टोमोग्राफी यानी एक्सरे की मदद से किसी ठोस चीज के अंदर का हाल पता लगाने की तकनीक के जरिए इसका राज खुला. 'ई-लेयर' में मिला दूध का यह दांत इस जगह मिलने वाला आधुनिक इंसान का इकलौता दांत है.

यह भी पढ़ें: आधुनिक मानव और निएंडरथाल के बीच कितना अंतर था?

लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम ने एक बयान में कहा है, "आधुनिक इंसान के बच्चे के जीवाश्म से मिला चबाने वाला यह दांत पश्चिमी यूरोप में आधुनिक इंसानों की शुरुआती मौजूदगी का सुबूत है." इसके बाद पुरातत्वविदों ने फ्यूलिग्नोक्रोनोलॉजी तकनीक के इस्तेमाल से गुफाओं की दीवारों पर जमी कालिख की परतों का विश्लेषण किया, जिससे बहुत पहले इस जगह जलाई गई आग के सुबूत मिलते हैं. फ्यूलिग्नोक्रोनोलॉजी में किसी बंद जगह पर जलाई गई आग से आसपास जमी कालिख का अध्य्यन करके अतीत की चीजें समझने की कोशिश की जाती है.

हम सभी होमो सेपियन्स हैं, जो इंसानों की सबसे बुद्धिमान और आखिरी बची प्रजाति हैं. अब एक शोध में जानकारी मिली है कि हमारे पूर्वज 40 हजार नहीं, बल्कि 54 हजार साल पहले निएंडरथलों के इलाकों यानी यूरोप और पश्चिमी एशिया में दाखिल हुए थे.
एक म्यूजियम में सूट पहने और चाकू थामे निएंडरथल की प्रतिकृति.तस्वीर: David Young/dpa/picture alliance

आग से भी पता चला इतिहास

स्लिमक बताते हैं कि इस विश्लेषण से शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि आधुनिक इंसान इस गुफा में करीब 40 वर्षों तक रहे थे. शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि एक वक्त ऐसा भी था, जब दोनों प्रजातियों के लोग इस गुफा या कम से कम इस इलाके में में साथ में रहते थे. उनका आकलन है कि निएंडरथलों ने होमो सेपियन्स को तीर बनाने के लिए सबसे अच्छे पत्थर फ्लिंट के स्रोत की राह दिखाई होगी, जो यहां से करीब 90 किमी दूर स्थित है.

यह भी पढ़ें: क्या कभी इंसान की दो प्रजातियों में भी प्यार हुआ था

लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में मानव विकास के विशेषज्ञ और इस शोध के सह-लेखक प्रोफेसर क्रिस स्ट्रिंगर कहते हैं, "मैंडरिन की खोज उत्साहित करने वाली हैं. वहीं यूरोप में आधुनिक इंसानों की आमद की पहेली का हल खोजने के क्रम में यह एक और पड़ाव है. हम आखिरी बची हुई प्रजाति कैसे रह गए, यह समझने के लिए यूरेशिया की अन्य प्रजातियों के साथ आधुनिक इंसान का रिश्ता समझना बेहद अहम है."

रिपोर्टः विशाल शुक्ला (एपी)