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समाजजर्मनी

पुरुषों में आत्महत्या से रोकने में कितनी कारगर होगी नई नीति

जूली ग्रेगसन
१६ मई २०२४

जर्मनी में हर साल करीब 10 हजार लोग आत्महत्या करते हैं. इनमें से तीन-चौथाई पुरुष होते हैं. आत्महत्या को रोकने के लिए यहां राष्ट्रीय स्तर पर रणनीति बनाई गई है.

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डिप्रेशन को पुरुषों में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण माना जाता है. इसके बाद, शराब या ड्रग्स जैसी चीजों का सेवन और अविवाहित या विधुर होना आता है
डिप्रेशन को पुरुषों में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण माना जाता है. इसके बाद, शराब या ड्रग्स जैसी चीजों का सेवन और अविवाहित या विधुर होना आता हैतस्वीर: Thomas Trutschel/photothek/picture alliance

जर्मनी में हर दिन औसतन 28 लोग आत्महत्या करते हैं यानी हर 56 मिनट में एक. यह आंकड़ा हत्या, सड़क दुर्घटना, एचआईवी/एड्स और अवैध ड्रग्स से होने वाली कुल मौतों से भी ज्यादा है. वैसे तो 1980 के दशक की शुरुआत की तुलना में जर्मनी में आत्महत्या की दर आधी हो गई है, लेकिन पिछले दो दशकों से यह काफी हद तक स्थिर बनी हुई है.

देश में आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए इसके तहत वृद्ध पुरुषों पर विशेष ध्यान देने की योजना बनाई गई है. उन्होंने 2 मई को इस योजना की शुरुआत के दौरान कहा, "हमें मौत और आत्महत्या से जुड़ी सामाजिक वर्जनाओं को खत्म करना होगा, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों के बारे में लोगों की सोच बदलनी होगी और सहायता सेवाओं को बेहतर तरीके से आपस में जोड़ना होगा."

उन्होंने कहा, "आत्महत्या के ज्यादातर मामले मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं. यह अकसर आवेश में लिया गया फैसला होता है. इससे सिर्फ एक व्यक्ति प्रभावित नहीं होता, बल्कि उसके बच्चे और उसका पूरा परिवार प्रभावित होता है."

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आत्महत्या को रोकने की रणनीति के तहत कई तरह के सुझाव शामिल किए गए हैं और उन पर काम शुरू कर दिया गया है. इनमें सलाह से जुड़ी सेवाओं के समन्वय के लिए राष्ट्रीय केंद्र बनाना, स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण का आयोजन करना, आत्महत्या करने की जगहों तक लोगों को पहुंचने से रोकना, और आत्महत्या रोकने के लिए विशेष राष्ट्रीय हॉटलाइन नंबर शुरू करना शामिल है. फिलहाल, जर्मनी में किसी तरह की आपात स्थिति में सहायता पाने के लिए तीन अलग-अलग नंबर हैं. नया हॉटलाइन नंबर इनसे अलग होगा.

साथ ही, केंद्रीय डाटा रजिस्टर तैयार करने पर भी विचार किया जा रहा है, जिसमें आत्महत्या के प्रयास की जानकारी शामिल की जाएगी. इस क्षेत्र में काम करने वाले ज्यादातर पेशेवरों ने राष्ट्रीय रणनीति का स्वागत किया है, लेकिन उन्होंने इस बात की आलोचना की है कि इस योजना में न तो किसी ठोस कदम के बारे में बताया गया है और न ही इसकी पूरी जानकारी दी गई है. साथ ही, यह भी नहीं बताया गया है कि इसके लिए बजट का इंतजाम कहां से किया जाएगा.

पुरुषों को अवसाद से निजात दिलाने के लिए कम प्रयास

मेन्स हेल्थ फाउंडेशन की सोशल साइंटिस्ट आने मरिया मोलर लाइमक्यूलर ने इस बात का स्वागत किया है कि आत्महत्या रोकथाम की रणनीति में पुरुषों की जरूरतों को भी शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि आत्महत्या रोकथाम को लेकर बनाई गई अब तक की योजनाओं में महिलाओं और पुरुषों, दोनों के लैंगिक अंतर को नजरअंदाज किया जाता रहा है. 

वह कहती हैं, "अवसाद यानी डिप्रेशन को पुरुषों में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण माना जाता है. इसके बाद, शराब या ड्रग्स जैसी चीजों का सेवन और अविवाहित या विधुर होना आता है, लेकिन पुरुषों में अवसाद का पता लगाने में अक्सर चूक हो जाती है यानी इसका सही तरीके से इलाज नहीं हो पाता."

उन्होंने आगे कहा, "अवसाद से जूझ रहे पुरुष और महिलाओं में इसके लक्षण बिल्कुल अलग हो सकते हैं. यह बात मानसिक रोग के डॉक्टरों को भी कभी-कभी पूरी तरह समझ में नहीं आती. शुरुआत में पुरुष अक्सर गुस्से से भरे रहते हैं. उन्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है. वे ज्यादा शराब पीने लगते हैं, खतरनाक काम करने लगते हैं या काफी ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं. हालांकि, इन सभी चीजों को पुरुषों की मर्दानगी समझ ली जाती है, अवसाद का लक्षण नहीं. इस वजह से अक्सर ये लक्षण पहचान में नहीं आते और अवसाद का पता नहीं चल पाता."

सुसाइड के लिए उकसाता सोशल मीडिया

साल 2022 में, पुरुषों में आत्महत्या की दर 55 से 60 साल के उम्र वाले और 80 से 85 साल के उम्र वाले लोगों में सबसे ज्यादा थी. 50 साल से ज्यादा उम्र के पुरुषों में भी आत्महत्या की दर तेजी से बढ़ी है. हालांकि, 15 साल से कम उम्र के बच्चों को छोड़कर, बाकी सभी उम्र समूहों में पुरुषों में आत्महत्या की दर ज्यादा रही. 15 साल से कम उम्र के बच्चों में लड़कियों की आत्महत्या की दर ज्यादा थी.

ऐनी मारिया के मुताबिक, कई पुरुषों को यह पता भी नहीं चलता कि उनके साथ क्या हो रहा है या वे मदद लेने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने पर लोग उनकी मर्दानगी पर सवाल उठाने लगेंगे. मारिया कहती हैं, "ज्यादा उम्र के पुरुष अपनी नियमित जांच के लिए फैमिली डॉक्टर के पास जाते हैं. यह एक महत्वपूर्ण जगह है जहां आत्महत्या से जुड़े लक्षणों की पहचान की जा सकती है. इसलिए, इन डॉक्टरों को यह पहचान करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि किन लोगों में आत्महत्या का खतरा ज्यादा है.”

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उन्होंने यह भी कहा कि पुरुषों के लिए ज्यादा सुलभ और कम खर्चीली सेवाएं मुहैया कराने के लिए काफी कुछ किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, ‘मेन्स शेड्स' जैसी सामुदायिक पहल, जो ऑस्ट्रेलिया में शुरू हुई. वहां पुरुष एक साथ मिलकर लकड़ी का काम या इसी तरह के अन्य काम सीख सकते हैं और साथ में ज्यादा वक्त बिता सकते हैं. साथ ही, सहायता की पेशकश उन जगहों पर की जा सकती है जहां पुरुष अक्सर जाते हैं. जैसे, नाई की दुकान. इस विचार को ब्रिटेन में काफी पसंद किया जा रहा है.

आत्महत्या की सबसे ज्यादा कोशिश करते हैं युवा

डायना कोट्टे यू25 की राष्ट्रीय समन्वयक हैं. यू25 युवाओं को आत्महत्या से रोकने के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग की सेवा देती है. इसे कैथलिक कैरिटास एसोसिएशन की ओर से मैनेज किया जाता है और आंशिक तौर पर आर्थिक मदद दी जाती है. यू25 हर साल लगभग 1,400 युवा स्वंयसेवकों को प्रशिक्षित करती है, लेकिन उससे मदद मांगने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिसे पूरा करना उसके लिए मुश्किल हो रहा है.

कोट्टे ने जोर देकर कहा कि सिर्फ आत्महत्या के आंकड़ों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, बल्कि आत्महत्या के प्रयासों पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. ऐसा अनुमान है कि जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो उससे पहले वह करीब 10 बार आत्महत्या का प्रयास कर चुका होता है. इससे व्यक्ति की सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचता है. आत्महत्या का प्रयास करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या 25 साल से कम उम्र के लोगों की है और युवाओं की मौत में आत्महत्या दूसरी सबसे बड़ी वजह है.

उनका मानना है कि राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति 25 साल से कम उम्र के लोगों के लिए ज्यादा काम की नहीं है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह बहुत बड़ी कमी है कि इस उम्र समूह पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. जबकि, हाल के अध्ययनों से यह बात साफ हो चुकी है कि युवा काफी परेशान हैं. हम सिर्फ यह उम्मीद नहीं कर सकते कि युवा हर बार मदद की लाइन में सबसे अंत में खड़े होंगे."

मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आर्थिक मदद की जरूरत

यू25 को जर्मन स्वास्थ्य मंत्रालय से भी पिछले 20 वर्षों से मदद मिल रही है, लेकिन इस वित्त वर्ष के अंत में इसे बंद किया जा सकता है. जर्मनी में आत्महत्या की रोकथाम के लिए बड़ी संख्या में संगठन और सेवाएं पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन कई अभी भी डोनेशन और चैरिटी फंडिंग पर निर्भर हैं. ये सेवाएं ज्यादातर स्वयंसेवी चलाते हैं या सीमित समय के लिए किसी प्रोजेक्ट के तौर पर चलती हैं.

जर्मन फाउंडेशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (डीजीएस) की अध्यक्ष उटे लेवित्सका ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय रणनीति को मजबूत कानूनी और आर्थिक आधार पर तैयार करना बहुत जरूरी है.

जर्मन सोसायटी फॉर साइकाइट्री, साइकोथेरेपी, साइकोसोमेटिक एंड न्यूरोलॉजी (डीजीपीपीएन) में आत्महत्या रोकथाम विभाग की प्रमुख लेवित्सका ने कहा, "भले ही हमारे पास केंद्रीय समन्वय केंद्र है, लेकिन बाहरी क्षेत्रों में ऐसे लोग नहीं हैं जो मरीजों या प्रभावित लोगों की देखभाल कर सकें, तो इससे कोई फायदा नहीं होगा."

जर्मनी में ऐसे ज्यादातर लोगों की मदद की जा सकती है जो आत्महत्या करने की सोच रहे हैं. हालांकि, देश में किसी मनोचिकित्सक से मिलने के लिए आपको महीनों तक इंतजार करना पड़ सकता है. यहां हर तीन में एक मनोचिकित्सक की उम्र 60 साल से ज्यादा है और वे जल्द ही सेवानिवृत्त हो सकते हैं. जर्मन फाउंडेशन फॉर डिप्रेशन सपोर्ट एंड सुसाइड प्रिवेंशन से जुड़ी इनेस कीटा का कहना है कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि हर किसी को आसानी से पर्याप्त मदद मिल सके और उसके लिए इलाज की सुविधा उपलब्ध हो.