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तकनीकविश्व

फेसबुक बन गई मेटा, लेकिन क्या है मेटावर्स?

२९ अक्टूबर २०२१

टेक वर्ल्ड यानी तकनीकी कंपनियों के बीच एक शब्द की बहुत चर्चा है – मेटावर्स. इस शब्द का जादू ऐसा चढ़ा है कि फेसबुक ने अपना नाम बदलकर मेटा रख लिया है. पर असल में मेटावर्स होता क्या है?

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तस्वीर: Eric Risberg/AP Photo/picture alliance

साइंस फिक्शन लिखने वाले नील स्टीफेन्सन ने 1992 में अपने उपन्यास ‘स्नो क्रैश' के लिए यह शब्द – मेटा- गढ़ा था. स्टीफेन्सन की कल्पना सच के इतने करीब पहुंच गई है कि फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने गुरुवार को ऐलान किया कि वह अपनी कंपनी का नाम बदलकर मेटा प्लैटफॉर्म्स इंक या छोटे में कहें तो मेटा रख रहे हैं.

पर इस शब्द के जादू के शिकार सिर्फ जकरबर्ग नहीं हैं. दुनियाभर की तकनीकी कंपनियां इस वक्त मेटावर्स में ही भविष्य खोज रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह भविष्य का इंटरनेट हो सकता है, जिसमें वर्चुअल रिएलिटी और अन्य तकनीकों की मिश्रण कर संवाद यानी एक दूसरे से बातचीत एक अलग स्तर पर पहुंच जाएगी.

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वैसे कुछ विशेषज्ञ इसे लेकर चिंतित भी हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस तकनीक के जरिए इतना निजी डेटा टेक कंपनियों तक पहुंच जाएगा कि निजता की सीमा पूरी तरह खत्म हो जाएगी.

क्या है मेटावर्स?

आप यूं समझिए कि इंटरनेट जिंदा हो जाए तो क्या होगा. यानी जो कुछ भी वर्चुअल वर्ल्ड में, स्क्रीन के पीछे हो रहा है, वह एकदम आपके इर्द गिर्द होने लगे. यानी आप स्क्रीन को देखेंगे नहीं, उसके भीतर प्रवेश कर जाएंगे.

इस रूप में देखा जाए तो कल्पना की कोई सीमा नहीं है. मिसाल के तौर पर अब आप वीडियो कॉल करते हैं. मेटावर्स में आप वीडियो कॉल के अंदर होंगे. यानी आप सिर्फ एक दूसरे को देखेंगे नहीं, उसके घर, दफ्तर या जहां कहीं भी हैं, वहां आभासी रूप में मौजूद होंगे. और यह सिर्फ एक मिसाल है.

Facebooks virtuele Welt Metaverse
तस्वीर: Facebook/dpa/picture alliance

ऑनलाइन होने वाली हर गतिविधि को आप इसी संदर्भ में देख सकते हैं. भविष्य की तकनीक पर निगाह रखने वाली विक्टोरिया पेटरॉक कहती हैं कि इसमें शॉपिंग से लेकर सोशल मीडिया तक सारी ऑनलाइन एक्टविटीज शामिल होंगी. पेटरॉक के शब्दों में, "संपर्क का यह अगला स्तर है, जहां सारी चीजें एकसाथ एक आभासी दुनिया का हिस्सा बन जाएंगी. तो जैसे आप असल जिंदगी जीते हैं, वैसे ही वर्चुअल जिंदगी जिएंगे.”

क्या क्या कर पाएंगे मेटवर्स में?

इसकी कोई हद नहीं है कि आप मेटावर्स में क्या क्या आभासी रूप से कर पाएंगे. आप किसी नाटक या कॉन्सर्ट में जा पाएंगे, ऑनलाइन सैर कर पाएंगे, कलाकृतियां देख या बना पाएंगे. कपड़े ट्राई करके खरीद पाएंगे.

वर्क फ्रॉम होम की दुनिया में इस तकनीक को सबसे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है. अभी आप वर्क फ्रॉम होम करते हुए अपने सहयोगियों को सिर्फ वीडियो कॉल में देखते हैं. मेटावर्स में आप अपने सहयोगियों के बीच मौजूद होंगे. वर्चुअल ऑफिस में सब साथ-साथ बैठे काम कर रहे होंगे.

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फेसबुक ने कंपनियों के लिए मीटिंग सॉफ्टवेयर भी लॉन्च कर दिया है. इसे होराइजन वर्करूम्स का नाम दिया गया है. इसमें ऑक्युलस वीआर हेडसेट का प्रयोग होता है. हालांकि इस सॉफ्टवेयर के शुरुआती रिव्यूज तो अच्छे नहीं आए हैं. ऑक्युलस हेडसेड 300 अमेरिकी डॉलर यानी 20 हजार रुपये से ज्यादा के आते हैं, जिस कारण यह बड़ी आबादी के पहुंच से बाहर है.

अपनी प्रेजेंटेशन में जकरबर्ग ने कहा, "मेटावर्स के बहुत से अनुभव एक से दूसरे में टेलीपोर्ट हो जाने से जुड़े होंगे.” लेकिन टेक कंपनियों को अभी इस बात पर सहमत होना है कि वे अपने-अपने प्लैटफॉर्म एक दूसरे से कैसे जोड़ेंगी. पेटरॉक कहती हैं कि इसके लिए सभी को कुछ नियम-कायदों पर सहमत होना होगा ताकि ऐसा ना हो कि कुछ लोग फेसबुक मेटावर्स में हैं और कुछ माइक्रोसॉफ्ट मेटावर्स में.

मेटावर्स क्या बस फेसबुक का है?

नहीं. माइक्रोसॉफ्ट और निविडिया जैसे कई और कंपनियां मेटावर्स पर काम कर रही हैं. निविडिया ऑम्नीवर्स के वाइस प्रेजिडेंट रिचर्ड केरिस कहते हैं, "हमें लगता है कि बहुत सी कंपनियां मेटावर्स में अपनी-अपनी वर्चुअल दुनिया बना रही हैं. यह ठीक वैसे ही है जैसे बहुत सी कंपनियों ने वर्ल्ड वाइड वेब में अपनी अपनी वेबसाइट बनाई हैं. सुगम होना और विस्तार की संभावनाएं खुली रखना जरूरी है ताकि आप एक से दूसरी दुनिया में आ-जा सकें फिर वे चाहे किसी भी कंपनी की हों. ठीक वैसे ही जैसे आप एक वेबसाइट से दूसरी वेबसाइट पर जाते हैं.”

वीडियो गेमिंग कंपनियों की मेटावर्स में खास दिलचस्पी है. फोर्टनाइट गेम बनाने वाली कंपनी एपिक गेम्स ने मेटावर्स बनाने के लिए निवेशकों से एक अरब डॉलर जुटाए हैं. रोब्लॉक्स भी इस दौड़ की एक बड़ी खिलाड़ी है. अपने मेटावर्स के बारे में रोब्लॉक्स ने कहा है कि यह ऐसी जगह होगा जहां "करोड़ों थ्रीडी एक्सपीरियंस के बीच लोग एक साथ आकर खेल सकेंगे, सीख सकेंगे काम कर सकेंगे और एक दूसरे से मिलजुल सकेंगे.”

फैशन ब्रैंड्स भी इस ट्रेंड में कूद रही हैं. इटली की फैशन ब्रैंड गुची ने जून में रोब्लॉक्स के साथ एक साझीदारी की और सिर्फ डिजिल एक्ससेसरी बेचने की योजना बनाई है. कोका-कोला और क्लीनिके ने मेटावर्स के लिए डिजिटल टोकन बेचे हैं.

वीके/एए (एपी)

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