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अपनी सुरक्षा का इंतजाम अब खुद करेगा ऑस्ट्रेलिया

२५ अप्रैल २०२३

ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि अमेरिका अब हिंद-प्रशांत महासागर में एकमात्र सुपरपावर नहीं है, इसलिए वह अपनी सुरक्षा बढ़ाने के लिए बड़े हथियार खरीदेगा.

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आकुस देशों के बीच हथियार समझौते हुए हैं
आकुस देशों के बीच हथियार समझौते हुए हैंतस्वीर: Evan Vucci/AP Photo

ऑस्ट्रेलिया अब हथियार खरीदने और उनके घरेलू उत्पादन को प्राथमिकता देगा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद देश की सुरक्षा की पहली समीक्षा में सिफारिश की गई है कि ऑस्ट्रेलिया को लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें खरीदनी चाहिए और देश में ही हथियारों के उत्पादन पर ध्यान देना चाहिए.

समीक्षकों ने कहा कि अमेरिका अब इंडो-पैसेफिक का एकध्रुवीय नेता नहीं है और चीन के साथ उसकी प्रतिद्वंद्विता से क्षेत्र परिभाषित हो रहा है व इलाके में संभावित युद्ध का खतरा बढ़ रहा है. इस समीक्षा में देश के उत्तरी हिस्से में स्थापित सैन्य अड्डों को दुश्मनों को रोकने, व्यापार मार्गों व संचार साधनों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है.

हाइपरसोनिक हथियार बनाएंगे आकुस देश - यूके, यूएस और ऑस्ट्रेलिया

इस समीक्षा को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने "दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे महत्वपूर्ण काम” बताते हुए कहा कि उनकी सरकार इन सिफारिशों को लागू करने पर काम करेगी.

अल्बानीजी ने कहा, "कोई हमारे भविष्य को आकार दे, उससे पहले हमें अपनी सुरक्षा को चाक-चौबंद करके अपने भविष्य की रूप-रेखा तय करनी चाहिए.”

युद्ध का खतरा है

समीक्षा में कहा गया है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से चीन अब तक का सबसे बड़ा सैन्य ढांचा तैयार कर रहा है और ऐसा "पारदर्शिता के बिना और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की रणनीतिक मंशाओं के बारे में किसी तरह के आश्वासन के हो रहा है.” चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र के छोटे द्वीपीय देशों में भी अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए रणनीतिक कोशिशें कर रहा है.

इस रिपोर्ट के कई हिस्से गोपनीय हैं लेकिन कुछ को सार्वजनिक किया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया को क्षेत्र में सर्वोच्च रणनीतिक खतरों से बचना चाहिए, जिनकी परिणति युद्ध के रूप में हो सकती है. रिपोर्ट कहती है कि मिसाइल-युग में ऑस्ट्रेलिया पर हमला करने के लिए किसी सेना को उसकी सीमा तक आना नहीं पड़ेगा.

समीक्षा में कहा गया है कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ऑस्ट्रेलिया अपने सबसे अहम सहयोगी अमेरिका के साथ मिलकर काम करेगा. इसके तहत द्वीपक्षीय सैन्य योजना, साझा गश्त और अमेरिकी सैनिकों व पनडुब्बियों का इलाके में ज्यादा भ्रमण जैसे कदम बढ़ाए जाएंगे.

सहयोग और साझेदारियां

रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया को जापान और भारत के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया व प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ रक्षा-साझेदारी मजबूत करने की भी हिदायत दी गई है ताकि क्षेत्र में संतुलन बना रहे.

इस समीक्षा पर प्रतिक्रिया में ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वह अपने क्षेत्रों की रक्षा कर सके और उत्तरी क्षेत्र में किसी भी दुश्मन ताकत की हमला करने की मंशाओं को रोक सके.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया की सेनाएं इन कामों के लिए तैयार नहीं हैं. मार्ल्स ने कहा, "हम गणनाओं को बदलना चाहते हैं ताकि कोई भी संभावित आक्रमणकारी यह ना सोच ले कि युद्ध के फायदे, इसके नुकसान से ज्यादा होंगे.”

समीक्षकों ने ऑस्ट्रेलिया-यूके-अमेरिका (आकुस) देशों के बीच हुए पनडुब्बी समझौतेको भी देश की सुरक्षा के लिए जरूरी बताया है. यह एक विवादित समझौता है जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका की परमाणु बिजली से चलने वाली तकनीक समेत छह पनडुब्बियां मिलेंगी. चीन इस समझौते पर आपत्ति जताता है और इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन बताता है.

अमेरिका से सहयोग

समीक्षकों का कहना है कि लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियार ऑस्ट्रेलिया के दुश्मनों को रोकने में देश की सेना को सक्षम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा कि देश को जल्द से जल्द इन्हें हासिल करना चाहिए और घर में ही इनके उत्पादन की क्षमताओं को विकसित करना चाहिए.

स्थानीय एबीसी टीवी को दिए एक इंटरव्यू में रक्षा मंत्री मार्ल्स ने कहा कि यूक्रेन युद्ध ने साबित किया है कि दोस्तों और सहयोगियों के पास मिसाइलों का भंडार होना काफी नहीं है, इसलिए इनका निर्माण ऑस्ट्रेलिया में होना जरूरी है.

मार्ल्स ने कहा, "बेशक, हम यह अमेरिका के साथ मिलकर करेंगे. हमारे बीच इतनी नजदीकियां हैं कि एक-दूसरे की सेनाओं के बीच मिसाइलों का आदान-प्रदान हो सके और इससे ऑस्ट्रेलिया की क्षमताओं में और ज्यादा वृद्धि होगी.”

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