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राजनीतिउत्तरी अमेरिका

अपने लोकतंत्र पर अब चिंतित हैं अमेरिकी

३ जनवरी २०२२

अमेरिका में लोकतंत्र की सूरत पिछले एक साल में काफी बदल गई है. पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों द्वारा कैपिटल हिल में की गई हिंसा के सालभर बाद अमेरिका समाज में राजनीतिक खाई और चौड़ी होती दिख रही है.

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Symbolbild USA Joe Biden am Telefon
तस्वीर: White House/imago images/ZUMA Wire

अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन के कैपिटल हिल में हिंसा और बवाल के एक साल बाद अमेरिकी नागरिक अपने लोकतंत्र की सेहत को लेकर बेहद चिंतित हैं. रविवार को जारी हुए दो सर्वेक्षणों के नतीजे यह भी बताते हैं कि करीब एक-तिहाई अमेरिकी कभी-कभी सरकार के खिलाफ होने वाली हिंसा को जायज मानते हैं.

6 जनवरी 2021 को डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों ने चुनावों में ट्रंप की हार को अस्वीकार करते हुए कैपिटल हिल में घुसकर तोड़फोड़ की और उस पर कब्जे की कोशिश की थी. कैपिटल हिल अमेरिकी सत्ता का केंद्र है, जहां अमेरिकी संसद की बैठकें होती हैं. इस हिंसा में पांच लोगों की जान गई थी और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पर भीड़ को भड़काने के आरोप लगे थे.

क्या कहते हैं सर्वे के नतीजे

सीबीएस न्यूज द्वारा कराए गए इन सर्वे में शामिल करीब दो-तिहाई लोग मानते हैं कि डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों के नेतृत्व में कैपिटल हिल पर किया गया हमला बढ़ती राजनीतिक हिंसा की अगुवाई करने वाला था, जिससे अमेरिकी लोकतंत्र को खतरा पैदा हुआ है. वहीं वाशिंगटन पोस्ट और मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के सर्वे में पाया गया कि अमेरिकियों में अपने लोकतंत्र के प्रति गौरव का भाव 2002 में 90 फीसदी से गिरकर अब 54 फीसदी ही रह गया है.

अब जबकि पिछले साल 6 जनवरी को हुई इस हिंसा की बरसी निकट है, तो इन सर्वे के नतीजे खास चिंता पैदा करने वाले हैं. सीबीएस के सर्वे में 28 फीसदी लोगों ने माना कि किसी चुनाव के नतीजों की रक्षा करने या उन्हें लागू करने के लिए बल-प्रयोग किया जा सकता है. वहीं वाशिंगटन पोस्ट के सर्वे में 34 फीसदी लोग मानते हैं कि कभी-कभी सरकार के खिलाफ हिंसक कार्रवाई जायज है. यह बीते दशकों में ऐसा मानने वालों की सर्वाधिक संख्या है.

बाइडन के सामने चुनौती

इन सर्वे के नतीजे अमेरिकी समाज को बांटने वाले बेहद कट्टर विचारों को रेखांकित करते हैं. कैपिटल हिल हिंसा के 14 दिनों बाद राष्ट्रपति की कुर्सी संभालते हुए जो बाइडेन ने इसी विभाजन से उबरने का वादा किया था.

गुरुवार को जो बाइडेन और अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ट्रंप समर्थकों की इस हिंसा की बरसी पर जनता को संबोधित करेंगे. ट्रंप के दो-तिहाई समर्थक अब भी उनके इन बेबुनियाद आरोपों पर यकीन करते हैं कि बाइडन कानूनी तरीके से चुने गए राष्ट्रपति नहीं हैं.

हिंसा के लिए कितने जिम्मेदार ट्रंप?

कैपिटल हिल हिंसा से कुछ ही समय पहले ट्रंप ने अपने हजारों समर्थकों को संबोधित करते हुए चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था और समर्थकों से कहा था कि उन्हें 'पूरी ताकत से लड़ना' चाहिए. सर्वे में शामिल करीब 60 फीसदी लोग मानते हैं कि जब सांसद बाइडेन की जीत पर मुहर लगा रहे थे, उस समय कैपिटल हिल में हुई हिंसा के लिए ट्रंप काफी हद तक जिम्मेदार हैं.

सर्वे के नतीजों में यहां भी एक चौड़ी खाई दिखती है. ट्रंप को वोट देनेवाले 83 फीसदी मतदाता हिंसा के पीछे उनकी जिम्मेदारी को 'थोड़ी' या 'बिल्कुल नहीं' मानते हैं. सीबीएस के मुताबिक  26 प्रतिशत अमेरिकी मानते हैं कि ट्रंप को 2024 में फिर से राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ना चाहिए.

कैसे तय हो जवाबदेही?

हाउस ऑफ रेप्रेजेन्टेटिव्स की एक चयन समिति ने विरोध के लिए उकसाने वालों और इसे आयोजित करनेवालों की भूमिका और जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए कई महीनों तक काम किया है. ट्रंप के करीबियों से बेहद सीमित सहयोग मिलने के बावजूद इस समिति ने 300 ज्यादा इंटरव्यू किए और हजारों दस्तावेज इकट्ठे किए हैं.

इस समिति के अध्यक्ष और सांसद बेनी थॉम्पसन ने रविवार को एबीसी से बातचीत में कहा, "हमारे हाथ कुछ ऐसी चीजें लगी हैं, जो चिंता बढ़ाने वाली हैं. जैसे कुछ लोग हमारे लोकतंत्र की अखंडता को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसा लगता है, जैसे कई लोग चुनावों को कमजोर करने के लिए साझा कोशिश कर रहे हैं. ये एग्जिक्यूटिव ब्रांच के लोग हो सकते हैं. रक्षा मंत्रालय के लोग हो सकते हैं और कुछ बेहद धनी लोग हो सकते हैं." उन्होंने कहा कि वह किसी भी गलत काम के किसी भी सुबूत को न्याय विभाग को सौंपने में बिल्कुल नहीं हिचकेंगे.

पैनल में शामिल दो रिपब्लिकन सांसदों में से एक लिज चेनी ने रविवार को इस बात के लिए ट्रंप की कड़ी आलोचना की कि उन्होंने कैपिटल हिल में उत्पात मचा रहे लोगों से शांत करने की अपील बड़ी देरी से की. उन्होंने कहा, "ट्रंप बहुत पहले ऐसी अपील कर सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. अपनी जिम्मेदारी की इससे गंभीर उपेक्षा की कल्पना भी करना मुश्किल है."

वीएस/एमजे (एएफपी)